सामाजिक

वाणी व्यक्तित्व की पहचान

वाणी को हमारे व्यक्तित्व की पहचान कहना पूर्ण सत्य नहीं कहा जा सकता, सिर्फ एक अंग भर कहा जा सकता है। क्योंकि व्यक्तित्व की पहचान के लिए बहुत सी खूबियों का योगदान होता है, जो समाज द्वारा स्वीकृत व समाज में प्रचलित होती हैं। सिर्फ वाणी को ही प्रधान कारक माना लेना पूर्णतया अनुचित है। संत कबीर ने कहा है-

ऐसी वाणी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को शीतल करे,आपहुँ शीतल होय।।

कबीर दास के इस कथन को गहराई से देखा जाए तो कबीरदास जी का कथन सिर्फ वाणी के प्रेषण के परिप्रेक्ष्य है,न कि व्यक्तिव के पहचान के बारे में।
         यह सर्वथा सत्य है कि मीठी, मधुर, शहद भरी वाणी हमारे कानों मे रस घोलती है, हमारे दिल को छूती है, हमें कर्णप्रिय लगती है, जिसे हम बार बार सुनना भी पसंद करते होंगे। लेकिन सिर्फ वाणी को किसी व्यक्तित्व की पहचान का माध्यम नहीं मान सकते।
     इसमें कोई संदेह कतई नहीं है कि हमें सदा मीठी वाणी में बोलना चाहिए, लेकिन साथ ही अपने स्वभाव, व्यक्तित्व, व्यवहार, स्पष्टवादिता, आचरण के साथ जीवन में प्राप्त अनुभवों और अनुभवों से सृजित कृतित्व को भी प्रभावी बनाकर ही हम अपने व्यक्तित्व की पहचान को विस्तार दे सकते हैं। इसमें से किसी भी एक के साथ या बिना किसी के संपूर्ण व्यक्तित्व की वास्तविक पहचान हो सके यह असंभव है। क्योंकि ऐसे में व्यक्तित्व  की संपूर्ण पहचान मिलने में संदेह है।यह ठीक है कि एक ,दो की कारकों की कमी/ अपूर्णता काफी हद तक आपकी पहचान को भले ही प्रभावित न करे, लेकिन करेगी ही नहीं, यह मान लेना खुद पर घमंड करने से कम नहीं है।
    उदाहरणार्थ एक पौधे के विकास के लिए केवल जल जमीन से काम नहीं चलेगा, उसके संपूर्ण विकास के लिए सूर्य का प्रकाश, सुरक्षित वातावरण और खाद के साथ देखरेख की भी जरूरत होती है, अब यह भी तर्क दिया जा सकता है कि जंगलों, पहाड़ों में स्वयं उग आए पौधों के साथ ऐसा कुछ भी नहीं तो ध्यान दीजिए कि वहां का वातावरण और उसकी जरूरत की ऊर्जा,जल और पृष्ठभूमि वैसी होती है,जो उसकी जरूरतें पूरी करता है। वहां भी अलग अलग स्थान पर विभिन्न प्रकार के पौधों का विकास अलग अलग होता है। हर जगह हर पौधा पूर्ण विकसित नहीं होता। मैदानी क्षेत्रों में सेब की उपज नहीं होती। धान गेहूं की अच्छी उपज देने वाली जगहों पर बहुत सी फसलें पूर्ण विकसित नहीं होती, या पर्याप्त उपज नहीं मिलता। इसलिए यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि व्यक्तिव की पहचान सिर्फ वाणी से हो सकती है। सपाट शब्दों में कहें तो यह असंभव है, बिना अन्य कारकों के संयोजन से।
    इसीलिए यह कहना पूर्णतया सही नहीं है कि वाााणी व््यक्तित्व

*सुधीर श्रीवास्तव

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