बाल कहानी- मोक्षांश की महत्वाकांक्षा
मोक्षांश कक्षा आठवीं का होशियार बच्चा था,उसे अपनी होशियारी पर बड़ा घमंड था।हो भी क्यों न,अपनी क्लास में टॉपर जो रहा करता है।इसीलिए वह अपने सहपाठियों को न सीधी मुह बात करता और न ही कभी उनसे दोस्ती की ख्वाहीश करता।इसके इस व्यवहार से उसके सहपाठी हमेशा रुष्ट रहा करते।स्कूल सत्र का वह अंतिम मास, अचानक मोक्षांश के पिता का स्थानांतरण किसी दूसरे शहर में हो जाता है।इसको जानकर वह बहुत दुखी होता है।और मन ही मन सोचता है- “काश!पिता जी का स्थानांतरण नही हुआ होता! तो इस वर्ष भी मै अपनी क्लास में अच्छे नम्बरों से पास होता और टॉपर रहने का रिकॉर्ड बनाया होता।पर अफशोस!! पता नही दूसरे स्कूल में मै….!” कहते हुए सोचना बंद कर देता है।
आज मोक्षांश के लिए नई जगह में स्कूल का पहला दिन था,कुछ सहमा, झिझका, पर आत्मविश्वास का अहम साफ झलक रहा था। क्लास में बच्चों की नजर मोक्षांश में जाके टिक गई।कुछ बच्चों ने दोस्ती करना चाहा पर,उसने उन बच्चों को अपने से तुच्छ समझकर,अनदेखा कर दिया।उसे अपनी होशियारी और टॉपर होने का अहंकार जो था।और फिर वार्षिक परीक्षा का टाईम-टेबल आ गया।सारे बच्चे तैयारी में लग गये।और नियत तिथि में परीक्षा सम्पन्न भी हुई।इधर मोक्षांश रिजल्ट के नम्बर का गुणा-भाग करना शुरु कर दिया।और फिर कुछ दिनों बाद रिजल्ट भी आ गया।सभी बच्चों की जिज्ञासा और धड़कनें तेज हो गई थी।पर मोक्षांश की महत्वाकांक्षा सिर चढ़ कर बोल रही थी।क्लास में वह हर किसी से यही कह रहा था- “मै टॉपर हूँ,टॉपर रहूँगा।”
तभी क्लास टीचर आते हैं,सन्नाटा छा जाता है।टीचर ने सभी बच्चों को शुभकामनाएं देते हुए उन बच्चों को पास बुलाते हैं जिनका रिजल्ट इस वर्ष क्लास में सबसे अच्छा था।
तभी- “सबसे पहले स्थान पर हैं !!… मिस लिली, दूसरे स्थान !!..निधि,तीसरे !!..निशि।” उत्साह के साथ घोषणा करते हैं।
पुरी क्लास तालियों की गड़-गड़ाहट से गूंज उठी।इधर मोक्षांश रिजल्ट सुनकर सिर पीट लिया,और सिर लटका लिया।
उसकी महत्वाकांक्षा पर पानी फिर गया था।तभी टीचर की नजर उस पर पड़ी और पास आकर उन्होंने कहा- ” मोक्षांश ! देख लिया न अपना रिजल्ट ?”
तुम अन्य बच्चों को तुच्छ समझते रहे। उनकी सतत निगरानी करते रहे।उनके रिजल्ट को अपने रिजल्ट से तुलना करते रहे। सारा समय गुणा-भाग में बर्बाद कर दिया।”काश!!अपनी ऊँची महत्वाकांक्षी को भूल कर पढ़ाई में ध्यान लगाया होता, तो यह दिन देखना नही पड़ता।”
मोक्षांश के महत्वाकांक्षी का भूत उतर चुका था।और सिर नीचा किए टीचर के हर-एक शब्दों को गौर करते हुए पश्चाताप के आंसु बहा रहा था।
— अशोक पटेल “आशु”