जहाँ चाह वहीं राह
जहाँ चाह वहीं राह है
ये बात एकदम सही है,
पर हम सबको लगता है
कि ये बड़ी साधारण बात है,
क्या ये बात कुछ अजीब नहीं लगता ?
कि ये साधारण सी बात
हम सबके दिमाग में नहीं आता।
जबकि इसके ढेरों उदाहरण मिलते हैं
हमारी आंखों के सामने
रोज ही इस तरह के किस्से आते हैं।
कहने को तो हम बड़े बुद्धिमान
सबसे होशियार, समझदार हैं
पर सच तो यह है कि
हमसे बड़ा बेवकूफ न कोई और है।
अब ये मत कहना कि ऐसा नहीं है
यदि ऐसा नहीं है तो
राह पाने की चाह मन में क्यों नहीं होता?
जहाँ चाह है वहीं राह है की कहावत
हमारे नाम के साथ जुड़कर
नज़ीर क्यों नहीं बनता?