कविता

साथ निभाना साथिया

बड़ी उम्मीद बड़ी हसरत है
साथ निभाना साथिया की चाहत है,
यह और बात है कि हमारे मन में
छिपा हुआ चोर भी है।
स्वार्थी प्रवृत्ति हिलोरें मारता है
हर किसी की तरह तुम्हें भी
गुमराह करने को ऐड़ी चोटी जोर लगा रहा है,
बस इसीलिए मेरे मन में तुम्हारे लिए
इतना प्यार उमड़ रहा है
और मेरे मन से नहीं सिर्फ जुबां से
साथ निभाना साथिया का स्वर निकल रहा है।
साथ किसी का हो, चाहत स्वार्थी होती है
साथ निभाना साथिया की आड़ में
मन ही नहीं जुबां की नियत भी खराब होती है,
साथ निभाना साथिया की ओट में
नियत बड़ी खोटी होती है।
हमारी नियति पर साथिया गुमराह हो जाता है
पर ईश्वर की पैनी दृष्टि होती है
और हमारे नीयत के अनुरूप
साथिया को साथ निभाने की प्रेरणा देता है
और बदनीयत की चाह रखने वालों की
चाह को सिर्फ चाह की लाइन में ढकेल देता है
साथिया साथ निभाना की उसकी उम्मीदें तोड़ देता है।
साथिया को साथ निभाने के लिए
नीति नियत और परिवेश भरपूर देता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921