हास्य व्यंग – तारीफ करने की कला
आजकल भगवान धरती पर भेजते समय कोई कला दे या ना दे.. या कुछ ज्यादा ही कला दे .. फिर भी जीवन धरती पर चलाना आसान नहीं है। कोई भी कला ना हो लेकिन यदि भगवान एकमात्र तारीफ करने की कला दे देता है तो जीवन रईसों के जैसे गुजर जाता है। ठाठ-बाट देखने योग्य होता है। इस एकमात्र कला के मिलने से धरती पर सारी रिद्धि सिद्धि मिल जाती है । दुनिया भर की सारी प्रसिद्धि मिल सकती है।
तारीफ करने की महत्ता पहले मुझे भी पता नहीं थी । मेरे अंदर इस गुण की घोर कमी रहने के कारण मैं इसके प्रभुत्व से अपरिचित थी। और हर जगह इसकी सजा भुगतती थी । लेकिन अब मुझे लगता है तारीफ करने की कला हर कला से ऊपर है। तारीफ करने की कला तो खाने की वस्तुओं में पनीर है, फलों में आम है, ऋतु में बसंत ऋतु है। अब आप इसी से महत्ता समझ लीजिए ।
मेरे एक साहित्यकार मित्र है जिनके पास कला के नाम पर कुछ विशेष नहीं है । लेकिन तारीफ करने की कला ईश्वर की कृपा से भरपूर मात्रा में हैं । और वह इस कला के चलते हर किसी की आंखों के तारे बने रहते हैं । दुलारे बने रहते हैं । अब वह साहित्यकार हैं तो थोड़ा बहुत लिख भी लेते हैं । लेकिन अपने लिखने की वजह से कम और तारीफ करने की कला की बदौलत हर खास जगह पर अपनी जगह पक्की किए रहते हैं । और उन्हें सभी का आशीर्वाद प्राप्त रहता है। हर जगह अपनी जगह रिजर्व रखना इस दुनिया में इतना भी आसान नहीं है लेकिन यह तारीफ करने की कला आसान बना देती है । वह तारीफ करने के मामले में इतने गुणवान हैं कि उनके सामने बड़े से बड़ा साधु महात्मा भी आ जाए तो उनके भजन कीर्तन से तुरंत प्रभावित होकर कुछ ना कुछ वरदान देकर चला जाए। तारीफ ऐसी है ही चीज जो भी अपने बारे में सुन लेता है वह भाव विभोर हो जाता है। और भाव विभोर इंसान से क्या करवाना असंभव है अर्थात कुछ भी असंभव नहीं है।
मैं भी सोच रही हूं अगर कहीं पर तारीफ करने की कोचिंग चलती हो तो वहां पर कोचिंग कर लूं। इस कलयुग में इस कला की बहुत आवश्यकता है। आपके पास भले ही चंद्रमा के जैसे सोलह कलाएं रहे लेकिन एक तारीफ करने की कला का ना रहना सब पर भारी पड़ जाता है ।इस कला की घोर कमी के कारण मुझे अपना भविष्य अंधकारमय होता हुआ दिखाई दे रहा है ।और यदि मुझे अपने भविष्य को उज्जवल करना है तो मुझे इस कला में पारंगत तो होना ही पड़ेगा। वरना जीवन भर यूं ही कलम घिस घिसकर साइड में पड़ा रहना पडे़गा । किसी को भी कोई कला जन्मजात नहीं मिलती है प्रशिक्षण के द्वारा वह निपुण होता चला जाता है। अतः इसकी कही पर कोचिंग ही अन्तिम उम्मीद है । क्योंकि हम जैसों को जन्मजात और विरासत में जिम्मेदारियां मिलती हैं ऐसी कलाएं आम लोगों को प्राप्त आसानी से नहीं होती।
मैंने एक मित्र से पूछा–” यह बताओ यह कला किस-किस फील्ड में काम आती है?”।
उसका जवाब मुझे भारी दुविधाग्रस्त कर गया वह बोला– जन्म से लेकर अपनी मृत्यु तक जितनी भी कलाऐ इस्तेमाल करोगे.. उसमें सबसे भारी तारीफ करने की कला ही पड़ेगी.. इसके बिना तो कोई कला काम ही नहीं करती है। हमारी राय है कि आप भी इसे जल्द से जल्द सीख ले और एक सफल और कामयाब जिन्दगी जिये। आखिर क्यों एक कला की कमी के कारण हम अपनी पूरी जिंदगी अभावग्रस्त जिए।
— रेखा शाह आरबी