कांटे और कंकड़
राह में बिछे हैं कितने कांटे और कंकड़
रक्षा करना हे महादेव शंकर
इस राह पर चल तो पड़े हैं
पता नहीं कितने कांटे पड़े हैं
इसके आगे खड़ी वहीं बड़ी दिवारें हैं
सामाजिक बंधन उधर जाने को नकारे हैं।।
मुसाफिर ने चलने को कर ली है तैयारी
बस साथ है सच्ची भक्ति, प्रेम, ईमानदारी
हाजरी लगाता है दरबार में फरयादी
करना आबाद, न करना बर्बादी।।
निकल पड़े हैं इस राह पर राही
आरती उतारे देव माता
देवगण करे वाहवाही
राह तुम्हें प्रभु दिखाता
नेक कर्म कर साथ हैं तेरे विधाता।।
छोड़ सब इस भ्रमजाल को
क्या खोना यहाँ क्या पाना है
अद्वैत की ओर बढ़ा ले ख्याल को
बस उस परमपिता को पाना है
छोड़ इस सारे संसारी माल को
न किसी और चीज को चाहना है
आज नहीं कल या परसों तो एक बहाना है।।
राहें होगी जरुर कंटीली
आगे तुम्हारे नहीं है हठीली
गमन होगा जब अलौकिकता की ओर
दूर होवेगा अंधेरा घनघोर
आरम्भ में है कांटों का जोर
लेकिन होवेगी जीवन में उज्जाली भोर।।
स्वागत करेंगे गेंदा, जूही और चमेली
हो जाएगी कांटों भरी राहें शर्मिली
मुझे क्या भय है मेरे नाथ
जब मिला है तुम्हारा साथ।।
— डॉ. सुरेश जांगडा