कविता

कांटे और कंकड़

राह में बिछे हैं कितने कांटे और कंकड़
रक्षा करना हे महादेव शंकर
इस राह पर चल तो पड़े हैं
पता नहीं कितने कांटे पड़े हैं
इसके आगे खड़ी वहीं बड़ी दिवारें हैं
सामाजिक बंधन उधर जाने को नकारे हैं।।

मुसाफिर ने चलने को कर ली है तैयारी
बस साथ है सच्ची भक्ति, प्रेम, ईमानदारी
हाजरी लगाता है दरबार में फरयादी
करना आबाद, न करना बर्बादी।।

निकल पड़े हैं इस राह पर राही
आरती उतारे देव माता
देवगण करे वाहवाही
राह तुम्हें प्रभु दिखाता
नेक कर्म कर साथ हैं तेरे विधाता।।

छोड़ सब इस भ्रमजाल को
क्या खोना यहाँ क्या पाना है
अद्वैत की ओर बढ़ा ले ख्याल को
बस उस परमपिता को पाना है
छोड़ इस सारे संसारी माल को
न किसी और चीज को चाहना है
आज नहीं कल या परसों तो एक बहाना है।।

राहें होगी जरुर कंटीली
आगे तुम्हारे नहीं है हठीली
गमन होगा जब अलौकिकता की ओर
दूर होवेगा अंधेरा घनघोर
आरम्भ में है कांटों का जोर
लेकिन होवेगी जीवन में उज्जाली भोर।।

स्वागत करेंगे गेंदा, जूही और चमेली
हो जाएगी कांटों भरी राहें शर्मिली
मुझे क्या भय है मेरे नाथ
जब मिला है तुम्हारा साथ।।

— डॉ. सुरेश जांगडा

डॉ. सुरेश जांगडा

पिता का नाम : श्री औमप्रकाश सम्पर्क : गांव व डाकखाना-चुलियाणा, जिला-रोहतक (हरियाणा) कवि व लेखक ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुडे रहकर बीस साल तक "भारतीय वायुसेना" में राष्ट्रसेवा का कर्त्तव्य निभाते हुए सनातन आर्य भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति-प्रेमी कवि हृदय व्यक्ति हैं। आपने वायुसेना से सेवानिवृति के पश्चात छ: साल तक खाद्य एवं पूर्ति विभाग में उपनिरीक्षक के पद पर कार्य किया। आपने हिन्दी विषय से स्नातकोत्तर, एम. फिल, पीएच.डी की उपाधियां अर्जित की हैं। इसके साथ आपने हिन्दी विषय में यूजीसी नेट, एचटेट व बीएड की परीक्षाएं भी उत्तीर्ण की हैं। वर्तमान में आप राजकीय महाविद्यालय सांपला रोहतक में हिन्दी के असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त हैं। लेखक के विभिन्न राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय शोध-जर्नलों में अब तक 40 शोध-पत्र प्रकाशित हो चुके हैं। लेखक की अब तक पांच पुस्तकें पुस्तकें प्यार का पथ अटपटो, हिन्दी साहित्य की दशा और दिशा, हिन्दी साहित्य की विकास यात्रा के विविध आयाम, चिन्तन, कोरोना काल अवसर या अभिशाप व भारतीय साहित्य में गीतोपदेश का स्थान प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी व हरियाणवीं में कविताएं लिखते हैं।