गीतिका/ग़ज़ल

रिश्ते

हुई ज़िन्दगी की शाम रस्तों पर, तो घर गए

हम उनके प्यार में कुछ इस तरह संवर गए

दो पल की मुलाक़ात, सदियों सी जुदाई

काश यूँ होता, कि वस्ल के पल ठहर गए

इंतज़ार की रात लंबी थी, ना गुज़ारी गयी 

इंतज़ार के दिन तो बा-मुश्किल गुज़र गए

ता-उम्र भर की मशक्क़त से जो कमाए थे

वो रिश्ते पल में ताश के पत्तों से बिखर गए

उनसे मिलने की उम्मीद में ही रात कट गई

न सब्र दिन का रखा गया, जो हुई सहर, गए

— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”

प्रियंका अग्निहोत्री 'गीत'

पुत्री श्रीमती पुष्पा अवस्थी