ग़ज़ल
गलियों में चीखें उभरने न दोगे,
करो एक वादा कि मरने न दोगे।
ख़ुदा को ख़ुदाई बदलनी पड़ेगी,
अगर हौसले को बिखरने न दोगे।
मुसीबत तो आती व जाती रहेगी,
वचन दो कि नीयत बदलने न दोगे।
रचेंगी फलक पर सुनहरे इबारत,
अगर गर्भ में ही कतरने न दोगे।
लहू जब जवानों का भू पर गिरेगा,
कहो दुश्मनों को ठहरने न दोगे।
सुनो गौर से ऐ गगन के परिंदों ,
अपर हैं तो हमको क्या उड़ने न दोगे?
‘अवध’ की सदा चीर देगी कलेजा,
कलेजे को पत्थर जो बनने न दोगे।
— डॉ अवधेश कुमार अवध