ऑनलाइन बैंकिग अथवा शॉपिंग: सही या गलत?
एक बार मैं अपने चाचाजी के यहाँ वापी घूमने के लिए गया हुआ था। अपने रिटायरमेंट के पश्चात् उन्होंने ने वहाँ पर ही एक शानदार मकान बना लिया था। चाचा-चाची उसमें अकेले ही रहते हैं। उनका एक ही बेटा है आशीष, जो नौकरीवश अपनी पत्नी एवं बच्चों के साथ अहमदाबाद में रहता है। एक दिन चाचाजी के साथ मैं उनकी बैंक गया। उन्हें कुछ पैसे किसी को ट्रान्सफर करवाने थे। एक घण्टा बैंक में बिताने के पष्चात् जब हम वहाँ से निकले तो मैं उनको यह पूछने से अपने आपको रोक नहीं पाया- ‘‘चाचाजी! आप इंटरनेट बैंकिग सेवा क्यों नहीं चालू कर लेते? इसके बहुत सारे फायदे हैं।’’
चाचाजी ने कहा- ‘‘ऐसा करने से क्या होगा और मैं क्यों करूँ?’’
तब मैंने उन्हें बताया कि आपको इन छोटे-छोटे पैसों को ट्रान्सफर करने के लिए बैंक तक आने की और अपना कीमती समय खराब करने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। आप जब चाहें तब घर बैठे ही इण्टरनेट के माध्यम से ही अपने पैसों को किसी को भी ट्रान्सफर कर सकते हैं। इसके साथ-साथ ऑनलाइन शॉपिंग भी कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको घर बैठे-बैठे ही किसी भी वस्तु को खरीदना आसान हो जायेगा।
उन्होंने पूछा- ”यदि मैं ऐसा करता हूँ तो क्या मुझे किसी भी समान के लिए घर से बाहर निकलने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी? तथा मुझे किसी भी कार्य के लिए बैंक आने की भी आवश्यकता नहीं पड़ेगी?“
मैंने उन्हें समझाते हुए कहा- ‘‘हाँ, यदि आप ऐसा करते हो तो आपको कहीं भी जाने की आवष्यकता नहीं पड़ेगी और आपको अपनी गृहस्थी चलाने का सामान भी घर बैठे ही मिल जाएगा। इसके लिए आपको अपने मोबाइल पर ई-कॉमर्स साइट्स (एप्प) डाउनलोड करनी होगें, भारत में बनें ऐसे कई ई-कॉमर्स साइट्स आज इण्टरनेट पर उपलब्ध हैं, जिनके द्वारा आपको घर बैठे ही समान की डिलिवरी आसानी से हो जाती हैं।
उन्होंने मेरी बातों को बहुत घोर से सुनकर ऑनलाईन बैकिंग एवं शॉपिंग के बारे में जो जवाब दिया वह बहुत विचारणीय था। उन्होंने मुझे यह सोचने के लिए भी विवश कर दिया कि ऑनलाइन बैकिंग अथवा शॉपिंग करने से समाज पर कितने प्रभाव या दुष्प्रभाव पड़ते हैं।
उन्होंने बताया कि- ”आज जब से मैं इस बैंक में आया। यहाँ पर मैं अपने परिचित व्यक्तियों से मिला। साथ-ही-साथ मैंने यहाँ के उन कर्मचारियों से बात भी की जो मुझे पहले से जानते हैं। और तुम तो जानते ही हो कि आशीष दूसरे शहर में नौकरी करता है और कभी-कभार ही अपने परिवार के साथ मुझसे मिलने आता है। आज उम्र के इस पड़ाव पर जिनका साथ एवं सहयोग मुझे चाहिये था, ये वो ही लोग हैं। इसलिए ही मैं बैंक में आना पसंद करता हूँ, यहाँ इन सभी से मिलकर अपनेपन का जो अहसास मुझे मिलता है इसके लिए मैं समय निकाल ही लेता हूँ।“
दो वर्ष पूर्व की बात है कि एक दिन मैं बहुत बीमार हो गया था। मैं हमेषा अपना मोबाइल जिस दुकानदार से रिपेयर या रिचार्ज करवाता हूँ, उसे जब मेरे बीमार होने की बात पता चली तो वह मुझसे मिलने और देखने के लिए घर पर आया और पास बैठकर मुझसे सहानुभूति जताते हुए कहा कि आपको यदि किसी भी चीज की आवष्यकता हो तो मुझे बता देना मैं आपकी मदद कर दूँगा।
कुछ दिन पूर्व तेरी चाची सुबह-सुबह घूमने के लिए निकली तब अचानक चक्कर आने से वह रास्ते में गिर पड़ी। तभी मेरे किराणे वाले की नज़र उस पर गई, उसने तुरन्त उसे उठाया और टैक्सी में बिठाकर उसको घर तक पहुँचाया, क्योंकि वह जानता था कि वह कहाँ रहती है।
और तो और मेरे पहचान के एक शर्माजी हैं, जो प्रत्येक महीने घर आकर मेरे यूटिलिटी बिल्स मुझसे पैसे लेकर भर आते हैं, जिसके बदले में थोड़े अतिरिक्त पैसे मैं उन्हें दे देता हूँ। शर्माजी के लिए यह कमाई का एक जरिया और रिटायरमेंट के बाद खुद को व्यस्त रखने का तरीका भी है।
मैं तो हमेशा से ही उन लोगों को जानना और समझना चाहता हूँ, जिनके साथ मेरा रोजाना लेन-देन का व्यवहार है, जो कि मेरी निगाहों में सिर्फ दुकानदार नहीं हैं। क्या ऑनलाईन शॉपिंग वाले हमें इस तरह के रिश्ते-नाते, प्यार, अपनापन भी दे पाएँगे? साथ ही एक बात उन्होंने बड़े पते की कही जो मुझे बहुत ही विचारणीय लगी, आशा करता हूँ कि आप भी इस उसे जानकर उस पर चिन्तन अवष्य करेंगे। उन्होंने बताया कि घर बैठे सामान मंगवाने की सुविधा देने वाले व्यापार उन देशों में ही फलता-फूलता है जहाँ पर आबादी कम है और मजदूरी एवं सेवा ;स्ंइवत ंदक ैमतअपबमद्ध अत्यधिक मंहगी है।
अब तुम ही बताओ यदि सारी चीजें ऑनलाइन हो गई तो समाज से मानवता, अपनापन, रिश्ते-नाते सब खत्म नहीं हो जाएँगे? इन सबके लिए मैं प्रत्येक सामग्री को अपने घर पर ही क्यों मँगाऊँ? और तो और मैं अपने समय को इन सभी के लिए मोबाइल पर आर्डर करने में ही क्यों झोंकू?
मित्रों!
क्या आज हम शारीरिक रूप से इतने कमजोर हो गये हैं कि हमें हमारी छोटी-छोटी आवष्यकताओं की पूर्ति के लिए ई-कॉमर्स साइट्स का सहारा लेना पड़े। भारत जैसे 140 करोड़ की आबादी वाले देश में इन सुविधाओं को बढ़ावा देना आज तो नया होने के कारण बहुत अच्छा लग रहा है, पर इसके दूरगामी परिणाम बहुत ज्यादा नुकसानदायक हो सकते हैं। देश में 80 प्रतिशत व्यापार जो छोटे-छोटे दुकानदार के रूप में गली-मौहल्लों में चल रहे हैं वे सब बंद हो जायेंगे और इससे बेरोजगारी भी अपने चरम सीमा पर पहुँच जायेगी। ऑनलाइन के चलते अधिकतर व्यापार कुछ गिनी-चुनी कम्पनियों के हाथों में चले जायेंगे और देष की बाकी जनता बेकारी और गरीबी की ओर अग्रसर हो जायेगी। मानाकि आज हमारा भारत विकासशील से विकसित राष्ट्र की ओर तेजी से बढ़ रहा है। हमारे देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी भी प्रायः अपने उद्बोधन में स्वबंस वित टवबंस की ही बात करते हैं। वे हमें हमेशा हमारे देश के ही कारीगरों के हाथों से बनी हुई स्वदेशी वस्तुओं को खरीदने की बात कहते हैं। इससे हमारा देश अर्थव्यवस्था के मामले में और अधिक मजबूती के साथ खड़ा होगा।
एक बात और भी है कि हम सभी को समाचार पत्रों एवं टी.वी. चैनल्स के माध्यम से ऑनलाइन ठगी होने के समाचार प्रतिदिन पढ़ने को मिलते ही रहते हैं। ऑनलाइन बैंकिग में भी साइबर क्राइम अधिक होने लगे हैं। थोड़ी-सी नासमझी के चलते हमारी मेहनत से कमाया हुआ पैसा हमारे हाथ से निकल जाता है। हम यह तो मानते ही हैं कि ऑनलाइन बैंकिग कार्यो से सुविधा तो हुई है, परन्तु इस बात से भी इन्कार नहीं कर सकते कि इससे अपराधिक गतिविधियों को भी बढ़ावा मिला है। भारत एक कृषि एवं परिश्रम-प्रधान देश है और पैसा भी बहुत कठिनाइयों से कमाया जाता है। दूसरी बात कि ऑन लाईन बैंकिग अधिक करने से कई हम साइबर अपराधियों के हौसलो को बढ़ाने में सहायक तो नहीं बन रहे हैं।
अन्तिम बात यह है कि यदि चाचाजी की बातों पर गौर किया जाये तो क्या हम ऑनलाइन शॉपिंग से हमारे आसपास के तथा हमारे परिचित दुकानदारों के साथ अन्याय तो नहीं कर रहे हैं? क्या ऑनलाइन शॉपिंग करने से हम उनसे अपने पुराने रिश्तों पर प्रश्न चिह्न तो नहीं लगा रहे हैं? क्या इससे उनके प्रति सद्भाव और अपनेपन में कमी नहीं आयेगी? वास्तव में आज समाज को ऑनलाइन व्यापार के दूरगामी (अच्छे व बुरे) परिणामों पर भी विचार एवं चिन्तन करने की आवश्यकता है।
— राजीव नेपालिया (माथुर)