बाद भी
कुदरती कहरों मुसलसल जलजलों के बाद भी
ज़िन्दगी रुकती कहाँ है हादिसों के बाद भी
हौसलों की आप उनको दाद दो जो बेटियाँ
छू रही हैं आसमां पाबंदियों के बाद भी
लोग जिनके जहन पर हावी हुईं ख़ुदगर्ज़ियाँ
वे परेशां ही रहे मनमर्ज़ियों के बाद भी
हार से बस जीत पाएगा वही इंसान जो
जहन को सुलझा रखेगा उलझनों के बाद भी
ये तुम्हारी ही दुआएं हैं कि मैं मंज़िल पे हूँ
हर कदम दुष्वार होते रास्तों के बाद भी
चल पड़ा एक बारगी जो भी बदी की राह पर
फ़िर बशर रुकता कहाँ है मश्विरों के बाद भी
बात इतनी याद रखना झूठ के दरबारियों
सच कभी हारा नही है साजिशों के बाद भी
— सतीश बंसल