चिल्हर
चिल्हर
बस में सफर करते हुए कण्डक्टर ने मुझसे पूछा- ‘‘कहाँ का टिकट दूँ ?’’
‘‘सोहनपुर का” मैंने कहा और उसकी ओर दस-दस के तीन नोट बढ़ा दिए।’’
उसने अट्ठाइस रुपए के टिकिट मेरी ओर बढ़ा दिए और आगे बढ़ गया। मैंने टोका- ‘‘मेरे बाकी के दो रुपए भी तो दीजिए।’’
‘‘चिल्लर होती, तो दे न देता। आप लोगों को चिल्हर पैसे लेकर चलना चाहिए।’’
मुझे लगा कि मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। मुझे खुद पर शर्म भी आई।
थोड़ी देर बाद एक नई सवारी ने बस में प्रवेश किया तो टिकट को लेकर कण्डक्टर की ऊँची आवाज सुनाई दी- ‘‘एक रुपए और निकालो।’’
‘‘माई-बाप ! मेरे पास अब एक भी पैसा नहीं है।’’ उस मैले कुचैले कपड़े वाले ने कहा।
‘‘देखो नाटकबाजी नहीं चलेगी। एक रुपए दे दोगे तो ठीक है, नहीं तो मोहनपुर की जगह सोहनपुर में ही उतार दिए जाओगे। यह बस है खैरात का अड्डा नहीं।’’
कण्डक्टर ने फरमान जारी कर दिया।
डाॅ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़