बातें
जो बात हम कह नहीं पाते है
वह कसक बनकर
मन में ठहर जाती है
जो बातें मन में नहीं ठहर पाती
वह आखों से बह कर
गालों पर ढलक आती है
जिसके निशान हमारे माथे पर शिकन बनकर
गाहे-बगाहे उभर आतें है
भले ही समय के साथ
कहीं-कहीं धुंध
फैला देती है अंधेरा
इसलिए
कहा कीजिये
बातें सुना किजिए
अपने पुर्वागर्हो, अपने फैसला सुनाने के आदतों को परे रख कर ।।
— साधना सिंह