लघुकथा

लघुकथा – हमदर्दी

” नहीं… मुझे नहीं चाहिए आपकी हमदर्दी।” नीता की अंतरात्मा  पुकार उठी, बॉस की हमदर्दी उसे जहर -सी लगी।

” क्या हुआ नीता?  तुम्हारा प्रमोशन पक्का है। तुम्हें पैसे की जरूरत है। पति भी नहीं रहे।  तुम्हारे बच्चे के भविष्य के लिए तुम्हें…..।”

नीता ने अपने कंधे से बॉस के हाथ को हटाते हुए खड़ी हो गई।

“नहीं चाहिए मुझे प्रमोशन। हद में रहिए। मुझे आपकी हमदर्दी नहीं चाहिए।  अपने बच्चे के भविष्य के लिए  घटिया सौदा.…हरगिज नहीं।”

नीता ऑफिस से निकलने लगी। 

— निर्मल कुमार डे

निर्मल कुमार डे

जमशेदपुर झारखंड [email protected]