कम्बल
निष्ठा आज बहुत उदास थी । मां को गये एक साल हो गया पर एक साल में एक दिन भी ऐसा ना गया जब वह उन यादों को भुला पाई हो । बीते दिन पल पल उसके सामने आने लगे । जब वह 10 साल की थी परिवार में सब बहुत खुश थे । पापा ,मां और उसका 4 साल का छोटा भाई शोभित । बहुत लाडली थी निष्ठा । वह शहर में रहते थे पर और सारा परिवार दादा, दादी, चाचा ,चाचियां और उनके बच्चे सब गांव में रहते थे । जब वह गर्मियों की छुट्टी में मां पापा के साथ जाती थी बहुत धमाचौकड़ी मचाते थे । पूरे घर की जान थी क्योंकि सबसे बड़ी थी इसलिए सबकी लाडली थी । सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था पर जिन्दगी कब कौनसा रंग दिखा दे कोई नहीं समझ सकता ।
एक दिन बाजार से पापा और शोभित स्कूटर पर आ रहे थे कि एक ट्रक ने टक्कर मार कर उन्हें कुचल दिया । पल भर में सब खत्म हो गया । मां को गहरा सदमा लगा और वह मानसिक सन्तुलन खो बैठी । दादा दादी उसे और मां को गांव ले आये । बहुत कोशिशे की गयी पर मां की हालत में सुधार नहीं आया ।
एक कम्बल जो मां ने शोभित के लिये बुना था बस हाथों में लेकर सहलाती रहती और बड़बड़ाती रहती । बस बुदबुदाती रहती हैं ओढ़ ले बेटा तुझे ठंड लग जायेगी । निष्ठा जैसे जैसे बड़ी हो रही थी मां की हालत देख कर बहुत दुखी होती थी । दादा दादी और पूरे परिवार का प्यार उसके घावों पर मरहम रखता था । उसकी शादी की बात चल रही थी पर वह मानसिक रुप से तैयार नहीं थी मां को छोड़ कर जाने को पर दादा दादी का कहना था कि बेटा हमें अपनी जिम्मेदारी निभाने दो ।
शादी हुये भी 4 साल हो गये मां को कोई अहसास नहीं था । अचानक मां की तबियत खराब हो गयी और दो दिनों में ही मां सबको छोड़ कर पापा और शोभित के पास चली गयी । आज मां को गये एक साल हो गया । वह मां के बक्स को खोल कर बैठी थी देख रही थी उस कम्बल को इस तरह तह करके रखा था जैसे शोभित सो रहा हो । वह उसे छूकर मां के अहसास को महसूस कर रही थी ।
— डा. मधु आंधीवाल