नया साल
लो साल इक फिर से गुज़र चला,
कुछ यादें दी, कुछ सबक दिए,
कुछ घाव दिए, फिर नमक दिए,
कुछ खुशी मिली, कुछ अश्क मिले,
कुछ स्नेह मिला, कुछ रश्क मिले,
कुछ मिला प्रेम, कुछ नफरत भी,
कुछ रही अधूरी हसरत भी,
कुछ युद्ध चले अंतर्मन में,
कुछ द्वंद्व समाज में, जीवन में,
कुछ साथ पुराने छूट चले,
कुछ नए तराने फूट चले,
कुछ पलों में अकड़े खड़े रहे,
कुछ पल समझौतों भरे रहे,
कुछ झूठ मिले और कुछ धोखे,
कुछ हसरत जिन्हें चला रोके,
कुछ मुस्कानें, कुछ आहें दे ,
ख़याल इक फिर से गुज़र चला,
लो साल इक फिर से गुज़र चला,
.
लो फिर एक साल नया आया,
कुछ उम्मीदों को संग लेकर,
कुछ सपनों को हाँ रंग देकर,
कुछ नई राह, कुछ नए सफ़र,
कुछ नव मंज़िल, पग वही मगर,
कुछ नव संग्राम हैं पुनः द्वार,
कुछ नए ज़ख्म, कुछ नए वार,
कुछ स्थिरता, कुछ परिवर्तन,
कुछ वही पौध, कुछ नया सृजन,
कुछ नव चिंतन, कुछ नव विमर्श,
कुछ नई कीर्ति, कुछ नया हर्ष,
कुछ नव चुनौतियां, नए लक्ष्य,
कुछ कच्चापन, कुछ कुशल-दक्ष,
कुछ नए नए आयाम मिलें,
कुछ कोशिश का परिणाम मिले,
कुछ द्वार नए यह खोल चले,
बस यही विचार चला आया,
लो फिर एक साल नया आया।
— मुकेश जोशी ‘भारद्वाज’