सामाजिक

चलो आज से श्रीगणेश करते हैं

वक्त की धुरी पर बहते दिन, हफ़्ते, महीने, साल अपनी रफ़्तार से गुज़र रहे है। हम सबको कहते सुन रहे हैं, अरे..! अभी तो २०२३ का साल बैठा था इतनी जल्दी ख़त्म भी हो गया? जी हाॅं गुज़र गया २०२३ और ये जो अभी-अभी २०२४ लगा है वो भी पलक झपकते गुज़र जाएगा। पर क्या किसीने ये सोचा कि रेत की भाॅंती फिसल रहे लम्हों को हमने जी भरकर जिया है? अनेकों स्वाद से भरी ज़िंदगी का लुत्फ़ उठाया है? एक-एक पल अनमोल और बेशकीमती है, हम कितनी फ़ालतू बातों में गंवा देते है। राग, द्वेष, ईर्ष्या, वैमनस्य को पालें ज़िंदगी को रद्दी समझकर जिए बिना ही चिता की आग में झोंक देते हैं। न कोई लक्ष्य तय होता है, न आयोजन, न जीने का हुनर आता है। सांसारिक सुख को भोगे बिना तू-तू, मैं-मैं करते जीवन लीला समेट लेते हैं। क्या हम जीवित होने के महत्व को समझ पाते हैं ? क्या हमें मालूम है कि हमारे एक-एक श्वास में अपार आनंद भरा हुआ है, एक-एक श्वास कीमती है और हम उस आनंद को जीते-जी प्राप्त कर सकते हैं? जीवन की सबसे अनमोल चीज है समय। हमारे जीवन की अवधि कितनी कम है, देखते ही देखते कब समय निकल जाएगा और हम दुनिया को अलविदा कहते निकल जाएंगे हैं पता ही नहीं चलेगा। हमारे उद्देश्य और अनेकों ख्वाहिशें धरी की धरी रह जाती है। इसलिए समय की कद्र करनी चाहिए, और एक-एक पल का सदुपयोग करते सलिके से ज़िंदगी को लज्ज़त लेते जीना चाहिए।

रोज़मर्रा की ज़िंदगी में घटती हर घटना हमें आईना दिखाती है, पर हम अपना असली चेहरा पहचानने से इन्कार कर देते है। अखबारों के पन्नें लहूलुहान महसूस होते है। आम इंसान से लेकर सियासी दलों की मानसिकता गिरती ही जा रही है। न ईश्वर का ख़ौफ़, न मृत्यु का। धड़ल्ले से तेज़ रफ़्तार से अपनी घुन में आड़े टेढ़े रास्तों पर चलकर ज़िंदगी को काट लेते है। घड़ी की सुई के साथ लोगों की भागती दौड़ती ज़िंदगी को देखकर आनंद फ़िल्म का राजेश खन्ना जी द्वारा प्रस्तुत एक डायलोग याद आ रहा है कि “बाबू मोशाय ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए लंबी नहीं मैं मरने से पहले मरना नहीं चाहता” पर गौर कीजिए, हम लोग मरने से पहले मर रहे है। फ़ालतू की बातों में अपना वक्त जाया कर रहे है। कोई ज़िंदगी का महत्व नहीं समझता। आनन-फ़ानन में उम्र काट कर निकल जाना है क्या? ज़रा रुकिए, सोचिए ज़िंदगी को हल्के में मत लीजिए। ईश्वर ने एक मौका दिया है इंसान के रुप में धरती पर हमें जो जन्म मिला है वो अपने आप में एक अलौकिक क्रिया है। उम्र की एक अवधि होती है, हममें से कोई नहीं जानता हमारी उम्र कितनी है। रात के सोए अगले दिन की सुबह देखेंगे या नहीं ये भी नहीं जानते। एक बार सीने के भीतर धड़क रहे मशीन ने धड़कना बंद कर दिया हमारा सारा खेल ख़त्म। ये जो देह, ये जो ज़िंदगी मिली है वो एक बार ख़त्म हो गई तो वापस कभी नहीं मिलेगी। पुनर्जन्म की बातें हमनें सिर्फ़ सुनी है वापस जन्म मिलता है या नहीं कोई नहीं जानता। क्यूँ हम किसी बीमार इंसान को बचाने में अपना सबकुछ दाँव पर लगा देते है? हम जानते है की ज़िंदगी कितनी कीमती है, एक बार जो हाथ से निकल गई फिर कभी नहीं मिलती। तो जो जितना वक्त हमारे हाथ में है उस एक-एक पल को क्यूँ न शांत चित्त से मोज में रहकर सबके साथ मिलजुल कर हंसी खुशी से बिताएं। तो आज अभी इसी वक्त से अपना सारा ध्यान ज़िंदगी को जश्न की तरह मनाने में लगा दीजिए। कुछ भी साथ नहीं जाएगा तो एक दूसरे के प्रति इतना वैमनस्य क्यूँ पालना। दुन्यवी एक-एक नज़ारों का लुत्फ़ उठाते, मुस्कान बांटते अपनी शख़्सियत को दुनिया में प्रस्थापित करते क्यूँ न जिया जाएँ कि जानें के बाद भी हमारी खुशबू अपनों के दिल में तरों ताज़ा रहे। 

ज़िंदगी बहुत हसीन है यारों जात-पात धर्म और परंपरा के नाम पर लड़ते, झगड़ते मत बिताओ। क्यूँ न रिश्तेदारों और पास पड़ोसियों के साथ प्यार और अपनापन रखकर ज़िंदगी की पारी ऐसे खेलकर निकलें की वर्ल्ड रेकार्ड बन जाए, ज़माना याद करें हमारे वजूद को ऐसी छाप छोड़ जाएँ। मरने के बाद लोगों के मुॅंह से निकलना चाहिए कि काश ये कुछ और साल ज़िंदा रहता।

असंख्य खुशियाँ बिखरी है हमारे आसपास उसे गले लगाईये। खुद का ख़याल रखिए, आपके परिवार के लिए आप सबकुछ है, पैसों से सब खरीदा जा सकता है ज़िंदगी नहीं, बहुत अनमोल है ज़िंदगी इसे व्यर्थ की उलझनों में उलझकर मत गंवाईये। खुद को ढूँढिए, ईश्वर से मिलिए ज़िंदगी ढ़ोने का नाम नहीं ज़िंदगी उत्सव सी मनाने का नाम है। क्यूँ हम सरल सहज ज़िंदगी नहीं बीता सकते? राग-द्वेष, बैर-नफ़रत पालकर क्यूँ जीते है। भूल जाईये आसपास क्या हो रहा है। हर शै से खुशियाँ, प्यार और आनंद ढूँढिए और भाईचारा फैलाईये, क्यूँकि आनंद बक्षी साहब ने कहा है कि  “ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते है जो मुकाम वो फिर नहीं आते, कुछ लोग एक रोज़ जो बिछड़ जाते हैं वो हजारों के आने से मिलते नहीं उम्र भर चाहे कोई पुकारा करे उनका नाम वो फिर नहीं आते” इसलिए खुद को जो ज़िंदगी मिली है उसको, परिवार को और दोस्तों को सहजकर रखिए और ज़िंदगी को जश्न की तरह मनाते भरपूर जी लीजिए। कल किसीने नहीं देखा आज का मजा लीजिए। आज जो चुटकी बजाते ही कल में ढ़लने वाला है। पीछले साल की तरह ये दिन कब आगे बढ़ते हफ़्ते में, फिर महीने में और कब साल में बदल जाएगा पता ही नहीं चलेगा और एक बार फिर हम कहेंगे कि ये लो..! अभी तो २०२४ लगा था गुज़र भी गया? ऐसे ही साल बीत रहे हैं हम जीना कब सीखेंगे? चलो आज से श्रीगणेश करते हैं।

— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर