लघुकथा

सुकून

आज फिर घर मे वही कोहराम मचा हुआ है, रामु और बिरजू दोनों भाई आपस मे लड़ रहें है |झगड़ा कोई भी विषय पर हो किन्तु ये लोग पुस्तेनी झगड़ा करने लगते है |मतलब रामु कहता,  “ये सब घर, गाड़ी, जमीन सब तो मैंने लिया है “

तू अपनी कमाई से क्या ख़रीदा है बता जरा, ज़ब तू कमाया ही नहीं तो हिस्सा कैसे लेगा, नहीं दूँगा |

बिरजू -कैसे नहीं देगा हिस्सा, यही सब के सामने भून डालूंगा, काट डालूंगा!

  अगर इस झगड़े मे कोई मोहल्ले का तीसरा व्यक्ति समझाने की कोशिश करता है तो बिरजू उस पर ही बरस पड़ता है| बिरजू है तो रामु का छोटा भाई किन्तु वह सबका पिता बन जाता है |

ज़ब रामु के पापा झगड़े को शांत करने आते है तो बिरजू फिर अपने पापा पर बरस पड़ता है -“तू तो चुप ही रहा कर सारी मुसीबतों का जड़ तू ही है “

पापा -अच्छा जो भी बात है घर पर आराम से बात करते है, ये चार लोगों के बीच हल्ला नहीं करो!

“तू जाता है या तेरा गला यही दबा दूँगा, बिरजू का गुस्सा आसमान पर “|पापा स्वयं की बेइज्जती सहते चुप रह गए!

यह सारी बातें रामु की पत्नी अनु छत पर सुन रही थी, लेकिन उनसे रहा न गया, वह सिसक रही थी |अपने बेटे को लेकर आँसू की धार बहा रही थी तभी बगल की जेठानी आती है और अनु को समझाती है -“अनु चुप रहो, रोने से क्या होगा, खाओ, पियो और मुस्कुराते रहो |तभी अनु सिसकते हुए बोली दीदी (जेठानी )नमक रोटी खाओ मगर प्यार से खाओ और रहो किन्तु इस घर मे तो दूध रोटी आफत है दीदी |

क्या करोगी अनु यही जिंदगी है और इसे ऐसे ही जीना पड़ेगा, ये लोग तेरी सुनने वाले नहीं है जेठानी बोली |

अनु -मसला तो जिंदगी मे सुकून का है न दीदी, जिंदगी तो हर कोई जी रहा है किन्तु वो सुकून है.. वो सुकून नहीं है दीदी और अनु फिर रो पड़ती है…!

— राज कुमारी

राज कुमारी

गोड्डा, झारखण्ड