बचपन
उम्र हो गई है अब मेरी पचपन।
नहीं भूल पाया हूं अब तक बचपन।
न किसी की चिंता थी न कोई फिक्र थी।
दुनियां में कुछ भी होता रहे
हमारी जिंदगी बेखबर थी।
हमेशा अपनी मस्ती में मस्त रहते थे।
मां को छोड़कर अन्य किसी से नहीं डरते थे।
“माल्या”नही थे फिर भी जहाज चलाते थे।
बरसात के पानी में कागज़ की नांव चलाते थे।
सारा दिन खेलना कूदना सारा दिन मस्ती करना
रोना और हंसना कभी चुप नही रहना।
व्यापार का खेल खेलकर लाखों रुपये कमाए।
तब शायद आज हम सच्चे व्यापारी बन पाए।
चिंता और तनाव शब्द हमारे शब्द कोश में नहीं था।
जिंदगी में एक अलग प्रकार ही का मजा ही था।
बीत गया बचपन बस उसकी यादें अब शेष है।
मेरे जीवन में बचपन का महत्व विशेष है।
— डॉ प्रताप मोहन “भारतीय”