कविता

सर्द हवाएं

जाड़े का ठिठुरन 

ये सर्द हवाएं

कोहरे चादर ताने 

सूरज को छुपाती

न दिन है न रात है

कैसी ये अदाएं है

प्रातः ओस की बूंदे

मोती बन गिरते है                                

हरे घास की क्यारियों में

लगते सबसे न्यारे है

ये जाड़े की रातें

बृद्धों को सताएं

न आग है न धूप है

बस ओस की बूंद है

जाड़े का ये मौसम

सबको बड़े सताते।

— बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।