ग़ज़ल
जिन्दगी जिसने संवारी है खुदा के वास्ते
नाम लिखता है खुदा का जो खुदा के वास्ते।
कोई अंजानी सी खुशबू है मेरे हाथों में अब,
है चमकता नूर सा चेहरा दुआ के वास्ते।
तुम चिरागों को जलाने के लिए निकले हुए,
तुमने पूछा भी कभी ए दोस्त हवा के वास्ते।
स्याह रातों में यह सन्नाटा अजब तारी हुआ,
कोई शै है टूटने लगती सदा के वास्ते।
फिर कहीं जा करके बरसेगा ही यह सावन,
बादलों में कालिमा छायी घटा के वास्ते।
आइना फिर से दिखा देगा हमारी दर हकीकत,
ज़िन्दगी एहसास है तो बस खता के वास्ते ।
— वाई.वेद प्रकाश