उर में रहते राम
भक्त के उर में रहते राम
झाँक ले हृदय-भीतर।
सोना चाँदी में यदि होते
पाते धनिक अमीर।
कथरी ओढ़े पा लेते हैं
उनको संत कबीर।।
राम जपे जो साँचे मन से
आम विटप या कीकर।
जो आया है उसको जाना
कब तक प्रभु ही जाने।
कुछ भी नहीं जीव के वश में
कब तक चलें तराने।।
वही सफल क्षण रमे राम में
क्या करना अति जीकर।
धन को जोड़ा जपा न थोड़ा
तूने जो हरि नाम।
माया के वश रहा रात दिन
चाह कामिनी काम।।
‘शुभम्’ मनुज की देह धन्य तब
जिए राम-रस पीकर।
— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’