गजल
बहुत दिन हो गए आँखों में वो मंज़र नहीं आते,
तुम्हारी याद के चेहरे हमारे घर नहीं आते।
समय के साथ मिलकर काम करना बुद्धिमानी है,
हमेशा जिन्दगी में एक से अवसर नहीं आते।
तुम्हारे प्यार के खत को लगा दी है नजर किसने,
बहुत दिन से कबूतर अब हमारे घर नहीं आते।
हुए हमदर्द दुश्मन भी जुदाई में जरा देखो,
तुम्हारे बाद छत पर अब कभी पत्थर नहीं आते।
बहुत है दूर मंजिल चल रहे हैं हम अकेले ही,
सदायें सुनके भी नज़दीक अब रहबर नहीं आते।
न जाने क्या खता कर दी है हमने प्यार में गुलशन,
जिन्हें यह जिन्दगी सौंपी वही दिलवर नहीं आते।
— डॉ. अशोक गुलशन