गीतिका/ग़ज़ल

गजल

थी खफ़ा जिंदगी ये हकीकत रही l

आरज़ूओं में लिपटी मुहब्बत रही l

दर्द ग़म को भुला बढ़ चले राह पर
ख्वाब ताबीर होने की चाहत रही l

तम की काली घटाओं ने घेरा बहुत
पर चरागों सा जलने की आदत रही l

ख्वाब ऐसे जो अबतक न पूरे हुए
थी अधूरी हमारी इबादत रही l

हम खतावार हैं न गुनहगार हैं l
क्यूँ ज़माने को इतनी शिकायत रही l

चाहतों के महल के झरोखे ‘मृदुल’ ,
झाँकती जिससे सारी शराफत रही l

— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल ‘

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016