ज़िंदगी के फलसफ़े को
ज़िंदगी के फलसफ़े को आजमाना चाहिये
सुख मिले या दुख हमें बस मुस्कराना चाहिये
हर तरफ़ खुशियाँ बरसती हों कहाँ तक लाज़मी
पास हों खुशियाँ अगर सब में लुताना चाहिये
दर्द पी कर जी रहेजो तड़फड़ाते भूमि पर
रिस रहे उन घाव पर मरहम लगाना चाहिये
है अगर इन्सानियत छलका मुहब्बत का घड़ा
प्यार से पलती हुयी नफ़रत मिटाना चाहिये
खो गये वो पल सुहाने जो जिये बचपन में थे
उन पलों की याद को बस गुनगुनाना चाहिये
नफ़रतो के कैकटस उगने लगे है हर तरफ़
भर मंजूषा प्यार की नफ़रत मिटाना चाहिये
— मंजूषा श्रीवास्तव ‘मृदुल’