हसदेव जंगलों का दर्द कौन सुनेगा ?
“अहो एषां वरं जन्म सर्व प्राण्युपजीवनम्।
धन्या महीरूहा येभ्यो निराशां यान्ति नार्थिन:।।”
इस श्लोक का अर्थ है- सब प्राणियों पर उपकार करने वाले इन पेड़ों (जंगलों) का जन्म सर्वोत्तम है। ये वृक्ष (जंगल) धन्य हैं, जिनके पास से कोई भी याचक कभी भी निराश नहीं लौटता है।
इस लेख को लिखने का मकसद सिर्फ इतना है कि मैं मानव हूं और जिंदा रहने के लिए मुझे ऑक्सीजन की जरूरत पड़ती है। ऑक्सीजन हमें जंगलों (पेड़ों) से मिलता है। छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग के हसदेव क्षेत्र में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा लाखों पेड़ काटने की मंजूरी दी गई है। हसदेव क्षेत्र छत्तीसगढ़ का ही नहीं बल्कि भारत का सबसे घाना जंगलों वाला क्षेत्र है। ऐसे में हमारी सरकारों द्वारा इन जंगलों को काटने की अनुमति देना मुझे इस लेख को लिखने से नहीं रोक पाया। बतौर पत्रकार और लेखक होने के नाते मेरा यह दायित्व बनता है कि मुझे सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर अपनी राय रखनी चाहिए।
पूरे विश्व में इन दोनों जलवायु परिवर्तन को लेकर लगातार चर्चा हो रही है। भारत इस चर्चा में मुखरता से अपनी बात रखता दिखाई देता है। मगर दूसरी तरफ भारत सरकार द्वारा हसदेव जंगलों को काटने की मंजूरी देना भारत के दोहरे चरित्र को दिखाता है। एक तरफ हम पूरे विश्व में चर्चा कर रहे हैं जलवायु परिवर्तन को लेकर और दूसरी तरफ हम अपने ही देश में लाखों पेड़ों को काटने की मंजूरी दे रहे हैं। इस तरह का दोहरा चरित्र रखना ना सिर्फ भारत की मान प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाएगा, बल्कि यह अपने आप में देश का अपमान भी है। सरकार को हसदेव जंगलों की कटाई की मंजूरी को लेकर पुनः विचार करने की जरूरत है।
भारत के अधिकांश शहर प्रदूषण से ग्रस्त है और ऊपर से हमारी सरकारें जंगलों को काटने की मंजूरी दे रही है। हमारे आने वाले पीढ़ी के लिए यह एक गंभीर समस्या खड़ी कर सकती है। हम सभी भारतीयों को हसदेव जंगलों की कटाई के बारे में सोचना चाहिए। आखिर जंगलों को काटना कैसा विकास का हिस्सा हो सकता है ? बतौर भारतीय मुझे शर्म आ रही है कि हमारे सरकारें जंगलों को काटने के लिए कहती हैं और हम भारतीय चुप रहते हैं, जबकि अफ्रीका और विदेश के जंगलों में आग लगने पर हम भारतीय लोग उन जंगलों को बचाने के लिए अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर खूब सारी पोस्ट करते हैं। क्या हसदेव जंगलों की कटाई पर हमारा चुप रहना हमारे दोहरे चरित्र को नहीं दिखता है ?
हसदेव जंगलों की कटाई ना सिर्फ पशु-पक्षियों के लिए खतरनाक साबित होगा, बल्कि इन जंगलों की कटाई से हमारे आदिवासी समाज के लोग भी प्रभावित होंगे। इन दिनों छत्तीसगढ़ में समस्त आदिवासी समाज के लोग हसदेव जंगल को बचाने के लिए सड़कों पर है और लगातार सोशल मीडिया पर आवाज उठा रहे हैं और आंदोलन कर रहे हैं, मगर हमारे सरकारों की आंखें-कानें बंद है। हमारा देश वही देश है जहां जंगलों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन जैसे आंदोलन हुए हैं। आज हम सभी को सोशल मीडिया में हसदेव जंगल को बचाने के लिए पोस्ट करने की जरूरत है। मैं आशा करता हूं कि आप सभी हसदेव जंगलों के कटान को लेकर आवाज उठाएंगे।
याद रखिए अगर आज आप हसदेव के जंगलों को बचाने के लिए सोशल मीडिया पर पोस्ट नहीं करते हैं, तो फिर आपको भविष्य में यह अधिकार नहीं है कि नॉनवेज नहीं खाओ और पर्यावरण बचाने को लेकर पोस्ट करने की। अगर आप लाख वृक्षों के काटने पर चुप हैं तो फिर आप स्वार्थी है। भले ही आप कितने ही बड़े पद पर हो या आपके पास कितना ही अधिक धन हो। प्रकृति को बचाना हम सभी की जिम्मेदारी है। आज हम चुप रहेंगे तो हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए सांसे कम कर रहे हैं।
— दीप खिमुली