हे सूरज
हे सूरज ,ऋतुओं में
ताप को समान रखो
जिसके बढ़ने से रहवासी
धरती पर रहवासी हो रहे दुःखी
धरा के घट सूख रहे
तितलियों के पंख जल रहे
जल ही जीवन है
हे सूरज उसे न सोख
बिन पानी मृत्यु दोष
इंसानों ,पशु पक्षियों
किट पतंगों का लगता है
शायद तुम्हे पता ही होगा
क्योकि तुम सूरज हो|
— संजय वर्मा दृष्टि