कविता

बदलाव

कहना कितना आसान है
बदलाव लाना।
कभी किसी पेड़ की जड़ को
बदलकर देखना।।
क्या पेड़ खड़ा रह पायेगा
ये करके देखना।
एक वट वृक्ष पीपल को
और अपनी नींव देखना।।
कच्ची ईंटों के आशियाने
बन जाते हैं,
अहंकार के बीज बोए
जाते हैं,,
कभी पत्थर की नींव
रख के देखना।
प्रेम के बीजों से
बगिया भरना।।
बदलाव ये जरूर लाना
तुम कभी ना बदलना।
सूरज चॉंद जैसे ही
तुम हर रोज़ आना।।
दिन रात की तरह समां
बांधकर देखना।
प्रकृति का अनुभव कर
इक अनुभूति जगाना।।
चहकती हैं चिड़िया
महकता है गुलशन,,
गुलाबी धूप है शबनम की
बूंदें रोशन,,
मिट्टी के तत्वों को
तुम पहचाना।
पंच तत्वों का ये संसार
क्या इसे खोना क्या इसे पाना।।
स्थिरता धरा को पहचान जाना।
बदलाव ये जरूर लाना
कि तुम कभी ना बदलना।।

— सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

सन्तोषी किमोठी वशिष्ठ

स्नातकोत्तर (हिन्दी)