बीत चला यह वर्ष
बीत चला यह वर्ष देकर अपने रंग
कुछ गहरे कुछ हल्के कई यादों के संग
कुछ खट्टे कुछ मीठे पल, और यादें थोड़ी चल अचल
वक़्त करता रहा मुझसे छल, और गया हाथों से फिसल
जाते जाते उंगलियों पर बना चला नवरंग
बीत चला यह वर्ष देकर अपने रंग
साल पुराना रहा है ढल और जीवन भी रहा बदल
दु:ख जाएंगे बरबस पिघल और होगा नव वर्ष सफल
अपनी आँखों में लेकर सुंदर सपने सतरंग
बीत चला यह वर्ष देकर अपने रंग
मन में सपने रहे मचल नई आशाओं की हरी कोंपल
करें अब हम कुछ नई पहल प्रयास न होंगे कुछ भी विफल
सजाएँ काव्य रंगोली अतरंगी मिलाकर ये सारे रंग
बीत चला यह वर्ष देकर अपने रंग
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”