गांव हमारी धरोहर
चलो चले, गांव की ओर।
जहां मिले, सुहानी भोर।
हरे भरे हैं, खेत बाग वन।
मिट्टी इसकी, मानो चंदन।
देख बादरा, काले-काले।
नाच उठे है, मन का मोर।
चलो चलें, गाँव की ओर।
जहाँ मिले, सुहानी भोर।
बहती नदियाँ, कर मनमानी।
इनसे मिलता, अमृत-पानी।
हवा मिले है, ताजा ताजा।
है नहीं यहाँ, मशीनी शोर।
चलो चलें, गाँव की ओर।
जहाँ मिले, सुहानी भोर।
सब आपस में, मिलकर रहते।
सुख दुःख सारे,मिलकर सहते।
यहाँ इन्साँ क्या,पशुओं से तक।
प्यार दुलार, करे घनघोर।
चलो चलें, गाँव की ओर।
जहाँ मिले, सुहानी भोर।
— इकबाल अहमद