गीत/नवगीत

राममय हुआ समूचा देश

दिनोंदिन बदल रहा परिवेश।

राममय हुआ समूचा देश।।

अयोध्या नगरी की है बात, 

सुना है हुए पाँच सौ साल। 

जहाँ पर जन्मे थे प्रभु राम,

वहाँ था मंदिर एक विशाल।

बहुत ही भव्य, बहुत ही दिव्य,

आस्थाओं का केंद्र विशेष।

राममय हुआ समूचा देश।।

आक्रमणकारी आया एक,

विधर्मी, हिंसक, क्रूर, नृशंस।

भयंकर रक्तपात के बीच,

किया उस मंदिर का विध्वंस।

बना दी ऊपर मस्जिद और 

भूमि में दबा दिए अवशेष।

राममय हुआ समूचा देश।।

सहे मुग़लों के अत्याचार,

पुनः अंग्रेजों के षड्यंत्र। 

हुए संस्कृति पर यूँ आघात,

मिटा भारत का गौरव-तंत्र।

इस क़दर हुए प्रभावित लोग, 

बदल ली भाषा, भोजन, भेष।

राममय हुआ समूचा देश।।

किए संघर्ष, हुए आज़ाद,

धर्म के नाम बँटा भू-भाग।

हुआ था भारी क़त्ले-आम,

दिलों में लगी इस तरह आग।

सियासत ने फैलाए पाँव,

बढ़ाकर सामाजिक विद्वेष। 

राममय हुआ समूचा देश।।

बीतते गए बरस दर बरस,

हृदय में दबी रही यह टीस।

मगर मंदिर बनवाता कौन,

रामद्रोही थे सत्ताधीश।

चाहिऐं एक वर्ग के वोट,

हमेशा दिया यही संदेश।

राममय हुआ समूचा देश।।

बदलकर करवट जागा देश, 

चुनी प्रतिबद्ध एक सरकार।

शिखर पर बैठे ऐसे लोग, 

जिन्हें था रामकाज से प्यार। 

दिखाई देने लगे प्रयास, 

भवन में आ पहुँचे अवधेश। 

राममय हुआ समूचा देश।। 

कि इसमें झूठ नहीं लवलेश।

मिटेंगे दुख, दारिद्र्य, क्लेश।

राममय हुआ समूचा देश।।

— बृज राज किशोर “राहगीर”

बृज राज किशोर "राहगीर"

वरिष्ठ कवि, पचास वर्षों का लेखन, दो काव्य संग्रह प्रकाशित विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं साझा संकलनों में रचनायें प्रकाशित कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ सेवानिवृत्त एलआईसी अधिकारी पता: FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001 (उ.प्र.)