मेरा भारत महान
लघुकथा
मेरा भारत महान
स्कूल से आते ही मैंने कहा- ‘‘गोलू बेटे ! परसों दिवाली है। दिवाली पर तुम्हें कौन-कौन से और कितने पटाखे चाहिए ? बाजार से क्या-क्या सामान लाना है ? मम्मी से सलाह करके एक लिस्ट तैयार कर लो।’’
आशा के विपरीत गोलू बोला- ‘‘पापाजी मैं कुछ और सोच रहा हूँ। कल हमारे स्कूल के सभी छात्र-छात्राएँ उरी हमले में शहीदों के परिवार वालों की सहायता के लिए चन्दा एकत्रित कर रहे थे तो मुझे लगा कि क्यों न मैं इस बार दिवाली में पटाखों पर खर्च होने वाली राशि प्रधानमंत्री सहायता कोष में जमाकर दूँ। एक साल यदि मैं बिना पटाखों के ही दिवाली मना लूँ तो क्या फर्क पडे़गा ?’’
उसकी बातों से मुझे जो प्रसन्नता हुई उसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता। सचमुच जिस देश के नौनिहाल ऐसे ऊँचे विचार रखते हों उसका एक पाकिस्तान तो क्या पूरी दुनिया वाले भी मिलकर बाल बाँका नहीं कर सकते।
- डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़