कविता

राम राज्य

स्वार्थ भरा जीवन क्या जीना, हँसकर समय बिताएँ।

नई उमंगे नये तराने, सीखें और सिखाएँ।।

छोड़ो कल की तुम बातों को, ये तो हुई पुरानी।

अब इतिहास रचें मिल करके, हो ये अमर कहानी।।

फूल खिले हर आँगन–गुलशन, मिले वक्त में रोटी।

मानवता को समझो सारे, रखो सोच मत छोटी।।

द्वेष भावना और अहिंसा, तज दो इनकी राहें।

धर्म सनातन दीप जलाकर, फैलाओ तुम बाॅंहें।। 

तप्त हृदय लेकर क्यों बैठे, जलते हैं अंगारे।

अपनेपन का मोल नहीं क्यों, हैं रिश्तों से हारे।।

करें माफ हम इक दूजे को, आओ गले लगाएँ।

मानव मन की इस बगिया को, मिल के हम महकाएँ।।

नहीं गाॅंठ पड़ने तुम देना, चलना सीधी रेखा।

रक्त रगों में इक सा बहता, ना करना अनदेखा।।

हम चौरासी भोग लिए अब, मानव तन है पाया।

राम राज्य फिर से लाना है, हमने स्वप्न सजाया ।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ [email protected]