शराब पर इल्ज़ाम मत दो
पीने के बाद झाड़ रहे नबाबी से,
मैंने समझाते हुए कहा एक शराबी से,
लंबा जीवन जियो,
यार शराब मत पियो,
शराब ने उजाड़े हैं घर-द्वार,
रोड पर ला दिए हैं परिवार,
शराब से चली गईं हैं जागीरें,
बिक गए महल,अटारी और हीरे,
जिंदगी का है सबसे ख़तरनाक फीवर,
अच्छे-अच्छों का खा गई है लीवर,
शराब से मरने वाली संख्या पर ध्यान दो,
निज फ्यूचर के हित में मेरी बात मान लो,
नशे की गुलामी को तोड़ दीजिए,
लंबी उम्र जीना है तो शराब छोड़ दीजिए,
पहले तो शराबी खूब मुसकाया,
मेरे अल्पज्ञान पर प्रश्न उठाया,
वह बोला,’भाया’ गूगल सर्च कर आइए
इस कदर देश में झूठ मत फैलाइए,
आपके कुतर्कों में बिल्कुल नहीं दम है,
शराब से मरने वालों की संख्या बहुत कम है
धर्म के नाम पर जो लड़ने को अमादा है,
ऐसे मृतकों की संख्या सबसे ज्यादा है,
शराब पर लांछन लगाना बेमानी है,
धर्म के बाद सबसे बड़ा कारण पानी है,
कहीं बाढ़ से मर रहे हैं,
कहीं अकाल से मर रहे हैं,
कहीं प्यास से मर रहे हैं,
कहीं चाल से मर रहे हैं।
कहीं मर रहे हैं भ्रष्टाचार से,
कहीं मर रहे हैं व्यभिचार से,
कुछ लोग मरें रोटी न पाने से,
उससे ज्यादा मर जाते अधिक खाने से,
लाखों मरें दूषित हवाओं से,
करोड़ों मरें नकली दवाओं से,
कभी जाकर देखिए गांवों में,
लाखों किसान मर रहे हैं तनावों में,
बस वही तनाव मिटाने के लिए,
अपने सारे गम भुलाने के लिए,
साहब, हम हर दिन मर-मर कर जीते हैं,
इसीलिए क्या करें,थोड़ी-बहुत पीते हैं,
स्वामी विवेकानन्द भी कम जिए थे,
तो क्या वह भी बहुत अधिक पिए थे,
आप न जाने क्यों इस कदर
शराब को रुसवा कर रहे हैं ,
जहां-जहां शराब बंदी है न-
वहां अधिक लोग मर रहे हैं,
बेकारी, महंगाई पग-पग पर डाट देती है,
ये दस रुपए की पाउच ही है
जो पूरा दिन काट देती हैं।
— सुरेश मिश्र