उम्र का चौथा पहर
उम्र का यह दौर चौथा, और साथी बढ रहा हूँ,
साथ है जब तुम्हारा, मुश्किलों से लड रहा हूँ।
साथ छोडें संगी साथी, या कि बच्चे छोड दें,
आँधियों में दीप जलता, हौसले से अड रहा हूँ।
गुजरे हुये दौर की वो सुनहरी यादें,
कर्तव्य पथ पर जो धूमिल पड़ी हैं,
नीड़ में रह गये जब दोनों अकेले,
याद फिर से आयी कहानी बनी हैं।
प्रीत गर समर्पण बनेगी, जीवन भर संग चलेगी,
स्वार्थ का अहसास गर, प्रीत बोझ बनने लगेगी।
रिश्ते नाते आजकल सब, अर्थ की नींव पर खडे,
अहंकार आधार हो तो, नींव कच्ची दरकने लगेगी।
उड़ गये नीड़ से बच्चे, जब बड़े हो गये,
माँ बाप तन्हा, बच्चों की राह जोहने लगे।
ख़ास मौका ज़िंदगी का, कोई आया नही,
बैठकर दोनों ही संग, ख़ुशियाँ संजोने लगे।
उम्र को मोहब्बत से मत जोडिये,
हिना सा सूख कर निखरता है।
इश्क कब किसी के रोके रूका,
जवानी याद कर जवां होता है।
— डॉ. अ. कीर्तिवर्द्धन