धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

राम जन्मभूमि की प्राणप्रतिष्ठा और प्राणप्रतिष्ठा का विज्ञान

“तारे से तीर्थ”, वैज्ञानिकता से परिपूर्ण यह वाक्य, मेरे मन-मस्तिष्क में बाल्यकाल से है, मैंने मेरे पिताजी के मुंह से यह वाक्य कई बार सुना था और तब मैं आध्यात्मिकता की दृष्टि से सर्वथा अबोध और अनभिज्ञ था I परन्तु इस तीन शब्दों की वैज्ञानिकता का मुझे अनेक वर्षों उपरान्त पता चला I एक वैज्ञानिक श्री पी. नरेन्द्रन ने एक यंत्र बनाया था, जिसके द्वारा वे विभिन्न सजीव और निर्जीव वस्तुओं की ऊर्जा का परिमापन करते थे I कई दशकों पूर्व उनके इस अनूठे शोध के विषय में किसी प्रतिष्ठित अखबार में बड़ा आलेख पढ़ा था I उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व और पश्चात् प्रस्तर प्रतिमाओं की ऊर्जा का परिमापन किया था I उसके आधार पर उन्होंने सिद्ध किया था कि प्राण प्रतिष्ठा हेतु बोलें गए दिव्य मन्त्र और विद्वान पण्डितों द्वारा की गई समस्त क्रियाएं उस निर्जीव पत्थर प्रतिमा में प्राणों का संचार कर देते हैं और प्रतिष्ठा के उपरान्त जब प्रतिमा का आभामण्डल मापा जाता है तो वह आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाता है और प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा के आभामण्डल के क्षेत्र में आने वाले व्यक्ति के भीतर सकारात्मक ऊर्जा का अंश न्यूनाधिक रूप से प्रवेश कर जाता है I इसीलिए हमारे यहाँ प्रतिमा की कम से कम तीन बार परिक्रमा का विधान है I इसी के आधार पर मैंने दशकों पूर्व मेरा एक आलेख “प्राण प्रतिष्ठा से प्राणित होती हैं, प्रस्तर प्रतिमाएं” एक पत्रिका में प्रकाशित हुआ था I भारत सरकार के परमाणु विभाग के एक सेवानिवृत्त परमाणु वैज्ञानिक मैन्हेम मूर्ति ने सजीव और निर्जीव वस्तुओं का आभा मण्डल मापने का एक यंत्र विकसित किया है, जिसका नाम है, युनिवर्सल स्कैनर I गतवर्ष उनसे मेरी भेंट हुई और उन्होंने बताया कि प्राण प्रतिष्ठा के उपरान्त मूर्तियों का आभामण्डल विराट हो जाता है और जब हम मन्दिर में परिक्रमा करते हैं तो वह प्राण ऊर्जा हमारे भीतर भी सकारात्मकता लाती है, उनका कथन है कि गौमाता, तुलसी माता, पीपल, वटवृक्ष, आंवले आदि की परिक्रमा से भी व्यक्तियों का आभामण्डल बढ़ जता है I  

अस्तु, लगभग साढ़े पांच सौ से भी अधिक वर्षों तक विदेशी आक्रान्ताओं के आधिपत्य में रहने के उपरान्त भी श्रीराम जन्मभूमि की दिव्य ऊर्जा के चलते, उस भूमि को मुक्त करवाने हेतु भक्तों में सतत संघर्ष की भावना जीवन्त रही, यह भी उस पावन क्षेत्र की दिव्य प्राण ऊर्जा का प्रत्यक्ष-परोक्ष प्रमाण है I अयोध्या इसलिए भी पावन तीर्थ है क्योंकि आक्रान्ताओं के आक्रमण के पूर्व वहां भगवान श्रीराम की जन्मभूमि होने के नाते सदियों तक वह स्थान सिद्ध संतों, महात्माओं और अनुयायियों की जप, तप और नाम स्मरण की साधना स्थली रहा है, उस पूरे क्षेत्र में उन लाखों साधकों की तपश्चर्या की सकारात्मक तरंगे [वाइब्रेशन्स] आज भी सतत प्रवाहमान हो रही हैं I

अयोध्या नगरी इसलिए भी पावन है क्योंकि वहां पांच जैन तीर्थंकरों, यथा भगवान आदिनाथ, अजीतनाथ स्वामी, अभिनन्दन स्वामी, सुमतिनाथजी और अनन्तनाथ स्वामी का जन्म कल्याणक हुआ है, और तो और अयोध्याजी में विभिन्न जैन तीर्थंकरों के जीवन से सम्बंधित कुल 18 कल्याणक घटित हुए हैं I इस दृष्टि से देखा जाए तो अयोध्याजी सकारात्मक तरंगों का घनीभूत नगर है अर्थात् परमपावन तीर्थ है I इस पावन तीर्थ में तो साकार रूप में उपस्थित रहे महाराजा दशरथजी, माता कौशल्या, कैकयी माता, माता सुमित्रा, वशिष्ठ मुनि, अगस्त्य मुनि, मुनि विश्वामित्र सहित भगवान श्रीराम और उनके तीनों भ्राताओं की सकारात्मक ऊर्जा तथा सिद्ध और अरिहन्त भगवन्तों तथा साधू भगवन्तों की परम पावन करने वाली ऊर्जा घनीभूत रूप में सदा के लिए संचरित होती रहती है I उनकी दीर्घकालीन तपश्चर्या, उनके प्रवचन और उनकी सात्विक उपस्थिति के कारण ऐसे क्षेत्र वास्तव में संसार सागर से तारने वाले हो जाते हैं I ऐसे स्थानों पर जब पावन और भक्तिभाव से, एक सात्विक अपेक्षा के साथ अनुयायी जाते हैं, तो उन्हें उस ऊर्जा का लाभ मिलता है, तथा अनुभूति भी होती है I तब लगने लगता है कि परमात्मा किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं लौटाते हैं I साथ ही उन अनुयायियों की पावन भावनाएं भी उस स्थान में प्रवेश कर उस तीर्थ स्थान को और अधिक ऊर्जावान तथा पावन बना देती है I

यह सर्वज्ञात तथ्य है कि श्रीराम जन्मभूमि की पवित्रता के प्रति भारत के जन-जन में आस्था का दिव्य जागरण करने की दृष्टि से तथा संत-महात्माओं की भगवान श्रीराम के प्रति अनुपम भक्ति को मूर्त रूप देने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों के अनथक एवं सतत संघर्ष और महती भूमिका को भारत की जनता ने अपनी आँखों से साक्ष्य भाव से देखा है I श्रीराम मन्दिर के निर्माण हेतु राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने सामान्य और विशिष्टजनों से समर्पण राशि एकत्रित की थी, और संघ पर अटूट तथा अपार श्रद्धा के कारण पर्याप्त धन एकत्रित हुआ था, जिसका उपयोग श्रीराम मन्दिर के निर्माण किया गया है I निश्चित रूप से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, संघ के प्रचारक रहे हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी, श्री आदित्यनाथ योगी आदि का योगदान सदैव ही लोकजीवन में जीवन्त रहेगा I

हमारे लिए यह एक सौभाग्य की बात है कि प्रभु श्रीराम के मन्दिर की प्राणप्रतिष्ठा का सुअवसर हमारे जीवनकाल में आया है और हम देख रहे हैं कि अयोध्या नगरी में शताब्दियों से प्रवाहमान सकारात्मक ऊर्जा ने पूरे विश्व को अपनी ओर आकर्षित किया है I श्रीराम मन्दिर वसुधैव कुटुम्बकम् और सर्वे भवन्तु सुखिनः को साकार करने में महती भूमिका निभाएगा, इसी कामना के साथ, आइए हम साक्षी बनते हैं, इस बहु प्रतीक्षित समारोह के I

जय श्रीराम  

डॉ. मनोहर भण्डारी