गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

देश सेवा की ये खुमारी है …..
बढ़ चलें बात ये सुधारी है …..

आज़मा है लिया सभी को ही …..
आ सके काम वो दुलारी है …..

झोंपड़ी में रहे गरीबी सुन …..
रात ही किस तरह गुज़ारी है …..

दो चुनौती रुके रहें दुश्मन …..
देख ललकार आज भारी है …..

लो हुये ज़ख़्म ही बहुत दिल पर …..
चल रही आज देख आरी है …..

दर्द बढ़ता गया नहीं सुध है …..
आरती फिर अभी उतारी है …..

अब चले जा रहे यहीं देखो …..
बढ़ रही देख बेकरारी है …..

चल न कोई सके यहाँ आकर …..
ये ज़मीं दूर तक हमारी है …..

जीत कर युद्ध आ गये हम तो …..
झुक रही आज ये अटारी है …..

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’