कविता

मेरे राम

संवरे सारे बिगड़े काम,

विपदा का हो काम तमाम,

संशय हटे तब मन का सारा,

प्रभु राम का लें जब नाम,

छवि अनोखी जिनकी प्यारी,

उनसे महके हर फुलवारी,

कांटों में भी गुल मुस्काए,

प्रभु राम की लीला न्यारी।

खुशबू उनकी जैसे चंदन,

बार बार है उनको वंदन,

दुखहर्ता सुखकर्ता हैं वो,

कहलाते जो दशरथ नंदन।

राघव ने भी थी रीत निभाई,

प्राण जाए पर वचन न जाई,

मां सीता के नाथ राम ने,

कीर्ति विश्व में ख़ूब थी पाई।

केवट को अपने अंग लगाया,

पुरुषोत्तम का दर्ज़ा पाया,

भक्ति में करवा लीन प्रभु ने,

रावण मुख से भी राम कहाया।

करते हैं सबका वो उद्धार,

उनके दरस मोक्ष का द्वार,

नहीं है बढ़कर कुछ भी उनसे,

राम नाम है जीवन सार।

— पिंकी सिंघल

पिंकी सिंघल

अध्यापिका शालीमार बाग दिल्ली