राजनीति

अंतरराष्ट्रीय स्तर परअयोध्या धाम की प्रतिष्ठा

प्रयाग राज कुम्भ, प्रवासी भारतीय सम्मेलन, अनेक इनवेस्टर्स समिट के आयोजन में योगी आदित्यनाथ की प्रबंधन कुशलता विश्व स्तर पर प्रसिद्ध रही है. विगत साढ़े छह वर्षों के दौरान अनेक वैश्वीक कीर्तिमान यूपी के खाते में आए हैं. अयोध्या का दीपोत्सव भी इसमे शामिल रहा है. एक बार फिर श्री राजमंदिर प्राण प्रतिष्ठा की चर्चा विश्व स्तर पर हुई है. इसकी भव्यता ने योगी की प्रबंधन कुशलता को एक बार फिर प्रमाणित किया है.
‘मोरे जियँ भरोस दृढ़ सोई। मिलिहहिं राम सगुन सुभ होई।।’
अयोध्या में मन्दिर निर्माण प्राण प्रतिष्ठा एतिहासिक अवसर था. इसके साथ ही विगत छह वर्षों में यहां हुए विकास की झलक भी अतिथियों और दुनिया ने देखी. यह धर्म नगरी ’विश्व की सांस्कृतिक राजधानी’ के रूप में प्रतिष्ठित हो रही है। सांस्कृतिक अयोध्या, आयुष्मान अयोध्या, स्वच्छ अयोध्या, सक्षम अयोध्या, सुरम्य अयोध्या, सुगम्य अयोध्या, दिव्य अयोध्या और भव्य अयोध्या’ के रूप में पुनरोद्धार के लिए हजारों करोड़ रुपये यहां पर भौतिक विकास के लिए लग रहे हैं।
आज यहां राम जी की पैड़ी, नया घाट, गुप्तार घाट, ब्रह्मकुंड, भरत कुंड, सूरज कुंड सहित विभिन्न कुंडों के कायाकल्प, संरक्षण, संचालन और रख-रखाव के कार्य हो रहे हैं। रामायण परम्परा की कल्चरल मैपिंग कराई जा रही है। राम वन गमन पथ पर रामायण वीथिकाओं का निर्माण हो रहा है। इस नई अयोध्या में पुरातन संस्कृति और सभ्यता का संरक्षण तो हो ही रहा है, भविष्य की जरूरतों को देखते हुए आधुनिक पैमाने के अनुसार सभी नगरीय सुविधाएं भी विकसित हो रहीं हैं। आज यहां राम जी की पैड़ी, नया घाट, गुप्तार घाट, ब्रह्मकुंड, भरत कुंड, सूरज कुंड सहित विभिन्न कुंडों के कायाकल्प, संरक्षण, संचालन और रख-रखाव के कार्य हो रहे हैं। रामायण परम्परा की ’कल्चरल मैपिंग’ कराई जा रही है। राम वन गमन पथ पर रामायण वीथिकाओं का निर्माण हो रहा है। इस नई अयोध्या में पुरातन संस्कृति और सभ्यता का संरक्षण तो हो ही रहा है, भविष्य की जरूरतों को देखते हुए आधुनिक पैमाने के अनुसार सभी नगरीय सुविधाएं भी विकसित हो रहीं हैं। मुख्यमंत्री ने कहा कि निश्चिंत रहिये, प्रभु राम कृपा से अब कोई अयोध्या की परिक्रमा में बाधा नहीं बन पाएगा। अयोध्या की गलियों में अब गोलियां नहीं चलेगी, कर्फ्यू नहीं लगेगा। अपितु दीपोत्सवां, रामोत्सव और श्रीराम नाम संकीर्तन से यहां की गलियां गुंजायमान होंगी।
पिछले कई दिनों से देश में राम आयेंगे आयेंगे राम आयेंगे की गूंज थी. अब लय स्वर और भाव सब बदल गए. अयोध्या जन्मभूमि पर भव्य मन्दिर में प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई..राम आए हैं आए हैं राम आए हैं.
इसी के साथ पांच सौ वर्षों का सनातन अनुयायियों का सपना साकार हुआ.इसके साथ ही इस सम्बन्ध में चल रहे नकरात्मक विचार भी निरर्थक हुए. दो शंकराचार्य और इंडी गठबंधन के नेताओं के विचार रंचमात्र भी बाधक नहीं बने. विपक्षी नेताओं का व्यवहार उनके अतीत के अनुरूप था. सत्ता मे रहते हुए उन्होंने प्रभु श्री राम को काल्पनिक बताया. किसी ने निहत्थे कार सेवकों पर गोलियां चलवाई. कोई सनातन के उन्मूलन का प्रलाप कर रहा है. कोई हिन्दू धर्म को धोखा बता रहा है. श्री राम चरित मानस पर हमला बोल रहा है. कोई इस मन्दिर की जगह अस्पताल और स्कुल बनाने का रोना लेकर बैठा है. ऐसे विपक्ष से श्री राम मन्दिर प्राण प्रतिष्ठा आमन्त्रण को अस्वीकार करने की ही उम्मीद थी. जिस वोटबैंक समीकरण पर उनका राजनीतिक अस्तित्व कायम हुआ, वह आज भी उसी मुकाम पर हैं. इन नेताओं का दुस्साहस केवल सनातन तक सीमित रहता है. अन्य किसी मजहब पर टिप्पणी की इनकी औकात नहीं है. वैसे ऐसे नेताओं के बयानों को जनमानस ने ही खारिज कर दिया है. उन्हें जाति मजहब तक ही सीमित रहना है. लेकिन दो शंकराचार्य को इन नेताओं का समर्थन मिलना अवश्य दिलचस्प रहा. क्योंकि श्री राजमंदिर आंदोलन के दौरान अयोध्या में भी शंकराचार्य को बेरहमी से उत्पीड़ित किया गया था. एक शंकराचार्य को झूठे आरोप में तमिलनाडु की सरकार ने जेल में रखा था.
वैसे भिन्नता सनातन धर्म में ही सम्भवत है. यही कारण है प्राण प्रतिष्ठा पर प्रश्न उठाने वाले शंकराचार्य को शास्त्रार्थ की चुनौती दी गई. यह भी सनातन में ही सम्भव है. गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा ने कहा था कि बाइस जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा में कोई दोष नहीं है। प्राण प्रतिष्ठा पूरी तरह दोष रहित है। इस दिन का मुहूर्त सर्वोत्तम है. इसके बाद अगले दो वर्ष तक प्राण प्रतिष्ठा और लोकार्पण का शुभ मुहूर्त नहीं मिल रहा था।
इसमें लग्नस्थ गुरु की दृष्टि पंचम, सप्तम एवं नवम भाव पर होने से मुहूर्त उत्तम है। मकर का सूर्य होने के कारण पौषमास का दोष समाप्त हो जाता है।शिलान्यास व लोकार्पण का मुहूर्त देने वाले पं. गणेश्वर शास्त्री द्राविड़ इस सभा के परीक्षाधिकारी मंत्री भी हैं। उनका कहना था कि देवमंदिर की प्रतिष्ठा दो तरह से होती है। एक संपूर्ण मंदिर बनने पर। दूसरा मंदिर में कुछ काम शेष रहने पर भी। संपूर्ण मंदिर बन जाने पर गर्भगृह में देव प्रतिष्ठा होने के बाद मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा संन्यासी करते हैं। गृहस्थ द्वारा कलश प्रतिष्ठा होने पर वंशक्षय होता है। मंदिर का पूर्ण निर्माण हो जाने पर प्रतिष्ठा के साथ मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है। जहां मंदिर पूर्ण नहीं बना रहता है, वहां देव प्रतिष्ठा के बाद मंदिर का पूर्ण निर्माण होने पर किसी शुभ दिन में उत्तम मुहूर्त में मंदिर के ऊपर कलश प्रतिष्ठा होती है।
श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम और पूजन विधि सोलह जनवरी से शुरू हो गई थी. जिस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होनी थी,उसे अठारह जनवरी को गर्भ गृह में अपने आसन विराज मान किया गया था. पौष शुक्ल द्वादशी अभिजित मुहुर्त में दोपहर बारह बजकर बीस मिनट पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम संपन्न हुआ. प्राण प्रतिष्ठा का मुहूर्त वाराणसी के पुजारी श्रद्धेय गणेश्वर शास्त्री ने निर्धारित किया था. इन्होंने आपत्ति करने वाले शंकराचार्य को चुनौती दी थी. प्राण प्रतिष्ठा से जुड़े कर्मकांड की संपूर्ण विधि काशी के लक्ष्मीकांत दीक्षित द्वारा सम्पन्न करायी गई.
यह पूजन विधि सोलह जनवरी से शुरू होकर प्राण प्रतिष्ठा तक चली.
जिस प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा होनी थी उसको अनेक प्रकार से निवास कराया गया. इस पूजा पद्यति में अधिवास कहते हैं। इसके तहत प्राण प्रतिष्ठा की जाने वाली प्रतिमा का जल में निवास,अन्न में निवास, फल में निवास,औषधि में निवास,घी में निवास, शैय्या निवास,सुगंध निवास समेत अनेक प्रकार के निवास कराए जाते हैं। यह कठिन प्रक्रिया थी। डेढ़ सौ से अधिक परंपराओं के संत धर्माचार्य, आदिवासी,गिरिवासी, समुद्रवासी,जनजातीय परंपराओं के संत महात्मा कार्यक्रम में सम्मलित रहे.अयोध्या में प्रभु श्रीराम के अवतार लेने से पहले यह चक्रवर्ती सम्राटों की वैभवशाली राजधानी थी। प्रभु के अवतार ने इसे आध्यात्मिक रूप से भी दिव्य बना दिया था। किंतु मध्यकाल में इसे विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण झेलने पड़े। पांच सौ वर्षों बाद यहां जीर्णोद्धार प्रारंभ हुआ है। भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण कार्य प्रगति पर है। किंतु अयोध्या का विकास यहीं तक सीमित नहीं है। इसको विश्वस्तरीय पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। हजारों करोड़ रुपये की विकास योजनाओं का क्रियान्वयन चल रहा है। इसमें मूलभूत सुविधाओं का विकास, ढांचागत निर्माण कार्य, शिक्षा स्वास्थ्य, सड़क कनेक्टिविटी आदि सभी क्षेत्र शामिल है।अयोध्या मास्टर प्लान में सभी विकास परियोजनाओं को शामिल किया गया है। इसमें पुरातत्व महत्व के मंदिरों और परिसरों का जीर्णोद्धार व सौंदर्यीकरण शामिल है। बीस हजार करोड़ रुपए के इन प्रोजेक्ट में क्रूज पर्यटन परियोजना, राम की पैड़ी परियोजना, रामायण आध्यात्मिक वन, सरयू नदी आइकॉनिक ब्रिज, प्रतिष्ठित संरचना का विकास पर्यटन सर्किट का विकास, ब्रांडिंग अयोध्या, चौरासी कोसी परिक्रमा के भीतर दो सौ आठ विरासत परिसरों का जीर्णोद्धार, सरयू उत्तर किनारे का विकास आदि शामिल हैं। इसके साथ ही अयोध्या को आधुनिक स्मार्ट सिटी के तौर पर विकसित किया जा रहा है। सरकार ने सैकड़ों पर्यटकों के सुझाव के बाद एक विजन डॉक्यूमेंट भी तैयार किया था.
अयोध्या के विकास की परिकल्पना एक आध्यात्मिक केंद्र
वैश्विक पर्यटन हब और एक स्थायी स्मार्ट सिटी के रूप में की गई. कनेक्टिविटी में सुधार के प्रयास जारी है। इनमें एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन के विस्तार, बस स्टेशन, सड़कों और राजमार्गों व ढांचा परियोजनाओं का निर्माण शामिल है। ग्रीनफील्ड टाउनशिप भी प्रस्तावित है।इसमें तीर्थ यात्रियों के ठहरने की सुविधा,आश्रमों के लिए जगह,मठ,होटल, विभिन्न राज्यों के भवन आदि शामिल हैं।
अयोध्या में पर्यटक सुविधा केंद्र व विश्व स्तरीय संग्रहालय बेजोड़ है. सरयू के घाटों के आसपास बुनियादी ढांचा सुविधाओं का विकास किया गया. ग्रीनफील्ड सिटी योजना, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा,सरयू तट पट विकास,पैंसठ किमी लंबी रिंग रोड,पर्यटन केंद्र,पंचकोसी परिक्रमा मार्ग विकास आदि से अयोध्या की तस्वीर को भव्य बना रही है. अयोध्या को स्मार्ट व विश्व स्तरीय नगर बनाने का कार्य प्रगति पर है। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अयोध्या आने वाले समय में वैश्विक मानचित्र में एक नया स्थान बनाने जा रहा है। अयोध्या विश्वस्तरीय पर्यटन केन्द्र के साथ साथ शिक्षा एवं स्वास्थ्य सुविधाओं का भी एक बड़ा केन्द्र बनाया जाएगा. जब प्रभु श्रीराम वनवास के दौरान चित्रकूट और दण्डकारण्य होते हुए सुदूर दक्षिण में श्रीलंका तक गये थे, उस समय उन्होंने भारत की जो सांस्कृतिक सीमा तय की थी, वही आज भी है। भगवान श्रीकृष्ण ने पांच हजार वर्ष पूर्व भारत की जो सांस्कृतिक सीमा तय की थी,वही आज भी है। एक समय भारत में अलग-अलग राजनीतिक इकाइयां थीं, लेकिन तब भी भारत सांस्कृतिक रूप से एक था। केरल से निकलकर एक संन्यासी ने भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए देश के चार कोनों में चार पीठों की स्थापना की। श्रद्धालु रामेश्वरम में गंगोत्री से तथा केदारनाथधाम में सुदूर दक्षिण से आकर जल चढ़ाते हैं और भारत की सांस्कृतिक एकता को मजबूत करते हैं।
सात वर्ष पहले रामनवमी के अवसर पर कुछ हजार श्रद्धालु आये थे. जबकि पिछली रामनवमी के अवसर पर एक दिन में पैंतीस लाख श्रद्धालु अयोध्या आये। अयोध्या लखनऊ, प्रयागराज, वाराणसी तथा गोरखपुर से फोर लेन की कनेक्टिविटी से जुड़ चुका है। अयोध्या को रेलवे की डबल लाइन से जोड़ा गया है। अयोध्या में अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का निर्माण भी हुआ है। प्रदेश सरकार से अन्तरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के प्रथम, द्वितीय व तृतीय चरण के कार्याें के लिए आठ सौ एकड़ भूमि की मांग की गयी थी। अभी इस एयरपोर्ट के प्रथम चरण का कार्य सम्पन्न हुआ है, लेकिन प्रदेश सरकार ने एयरपोर्ट अथाॅरिटी ऑफ इण्डिया को पूरी भूमि उपलब्ध करा दी। एयरपोर्ट की कनेक्टिविटी को फोर लेन से जोड़ा जा चुका है।अयोध्या में श्रीराम पथ,भक्ति पथ,धर्म पथ तथा श्रीराम जन्मभूमि पथ को चौड़ा किया गया.अयोध्या में फाइव स्टार तथा सेवेन स्टार होटल बन रहे हैं। अयोध्या में आठ होटल बन चुके हैं तथा लगभग पच्चीस नये प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। पंच कोसी, चैदह कोसी तथा चैरासी कोसी परिक्रमा मार्गाें के पुनरुद्धार के कार्य हुए हैं। यहां क्रूज सेवा की सोच साकार हुई है। अयोध्या शोध संस्थान के माध्यम से अयोध्या के पुरातात्विक महत्व को उजागर करने तथा मन्दिर म्यूजियम के माध्यम से भारत में मन्दिरों की शैली दर्शाने का कार्य किया गया.

— डॉ दिलीप अग्निहोत्री

डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

लखनऊ मो.- 9450126141