बिराजे रामलला निज धाम, जगत में छाया है उल्लास
पाँच शताब्दियों के अथक संघर्ष व प्रतीक्षा के पश्चात प्रभु श्री रामलला अपने नव्य, भव्य एवं दिव्य मंदिर में प्रतिष्ठित हुए । प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही संपूर्ण विश्व में उल्लास व उत्सव का सहज वातावरण बन गया, जो जिस स्थान पर था उसने उसी स्थान को अयोध्या बना लिया । रामलला के निज धाम में बिराजते ही भारत के कोने कोने में ऐसा स्वतः स्फूर्त, भक्तिमय उत्सव आरम्भ हुआ जो कल्पनातीत है – सारे पर्व एकरस होकर रामपर्व हो गए – कहीं होली खेली जा रही थी, कहीं भजन मंडली बैठी थी, कोई प्रभु की रथयात्रा निकाल रहा था, कोई न्योछावर लुटा रहा था और सब दीवाली मना रहे थे। आह्लादकारी पल, नयन प्रेमाश्रुओं से भरे, जिह्वा पर जय श्री राम। चारों दिशाएँ राम नाम के गुंजन के हर्षित थीं। आयु-लिंग, वर्ग, जाति सभी भेद मिट गए थे – जो थे बस सनातनी थे, राम भक्त थे। प्रसन्नता में लोग मानों सुध बुध खो बैठे हों । अपरिचितों को अपने हाथ से लड्डू खिला रहे हैं । रामधुन पर नाच रहे हैं । यह भारतीय जनमानस में प्रभु राम का स्थान है, प्रभाव है उनके प्रति स्नेह है, समर्पण है। राम ही आधार हैं ।
जन्मभूमि पर बने भव्य दिव्य मंदिर में प्रभु श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के साथ ही करोड़ों आस्थावान हिन्दुओं का श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ संपन्न हुआ है।सनातन समाज की अभिलाषा पूरी हुई है। अयोध्या में प्रभु श्री रामलला के विराजमान होने से हिंदू सनातन समाज को एक नई ऊर्जा मिली है जो उसको अनंतकाल तक चैतन्य रखेगी। सनातन धर्म तथा संस्कृति की पुनर्स्थापना के इस अद्वितीय उत्सव ने राष्ट्रीय चेतना को एक नई दृष्टि दी है।
प्रभु श्री राम के अभिवादन के लिए संपूर्ण हिंदू सनातन समाज एकाकार हो गया और दीपोत्सव मनाने के लिए जात- पात, ऊंच -नीच की सभी दीवारें ढह गयीं। जो लोग पहले फोन पर राम -राम कहने पर हिचकते थे अब फोन पर राम -राम, जय श्री रामलला बोलकर अभिवादन कर रहे हैं । निश्चय ही अयोध्या में प्रभु श्री रामलला के विराजमान हो जाने और समाज के इस उल्लास को देखने के पश्चात हमारे पूर्वज भी अपने दिव्य धाम में आनंद मना रहे होंगे ।
22 जनवरी 2024 का दिन मानों कलयुग में त्रेता युग की झांकी दिखा रहा था। एक ऐसा पावन दिन जो शताब्दियों से प्रतीक्षित था अतः दीपोत्सव का आयोजन भी उसी के अनुरूप हुआ। रामराज्य का स्वप्न साकार होता दिख रहा है। आध्यात्मिक चेतना का उदय हुआ है। भगवान राम धर्म, जाति, देश और मानव निर्मित अन्य पहचानों से परे हैं। इन विषयों से जुड़े मतभेदों को भूलकर श्री राम के आदर्शों पर चलना ही रामराज्य की ओर बढ़ना है। प्रभु श्रीराम का जीवन व उनके आदर्श ही भारत की विश्व का नेतृत्व करने वाला राष्ट्र बनने की आकांक्षा पूरी कर सकते हैं।
प्रभु श्री रामलला के विराजने से प्रत्येक व्यक्ति भावुक हो रहा है, आनन्द संतृप्त होकर राममय हो रहा है। समस्त सनातन समाज ने अपरिमित धैर्य का परिचय देते हुए इतने लंबे कालखंड तक धैर्य रखा और आज प्रतीक्षित घड़ी आने पर वह उत्सव की सीमाएं लांघ जाना चाहता है। प्रभु श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के बाद अयोध्या नगरी देवलोक सी लग रही है । यहाँ पधार रहे रामभक्तों का रोम- रोम पुलकित है।अयोध्या में प्रभु श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा सनातन की विजय का अवसर है किन्तु सनातन की मर्यादा का स्मरण कराते हुए प्रधानमंत्री जी ने इसे विनय का पल मानने का आह्वान किया है साथ ही इस दिन को भारत के लिए मानसिक व वैचारिक गुलामी से स्वतंत्रता दिलाने का मार्ग प्रशस्त करने वाला दिन भी बताया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम और अपने विशिष्ट अनुष्ठान के पूर्ण होने के पश्चात उपस्थित अतिथियों को संबोधित करते हुए कहा कि – हमारे राम आ गए, प्राण प्रतिष्ठा हो गई, अब आगे क्या ? और फिर इस प्रश्न का उत्तर देते हुए जोड़ा, अब हमें अगले एक हजार वर्ष की नींव रखनी है। अब हमें वास्तविक रामराज्य की ओर अग्रसर होना है। रामराज्य की सार्थकता इसी में है कि सबके कल्याण की चिंता की जाये।अभी केवल और केवल रामराज्य की स्थापना का ही चिंतन मनन करना है और राष्ट्र को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाना है और बिलकुल उसी तरह जिस प्रकार से रामयुग था। प्रभु श्री रामलला के आदर्शों का सतत प्रचार करना है ताकि हमारा समाज और अधिक मजबूती से उभर सके। किसी को यह नहीं सोचना कि वो छोटा है, राम जी की गिलहरी को ध्यान में रखना है।
प्रभु श्री रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर जहाँ जन जन प्रमुदित था, वहीं भारत के विरोधी दल नाराज़ बाराती बनकर बैठे थे। अयोध्या में प्रभु श्री रामलला के विराजने के अपूर्व अवसर पर कांग्रेस सहित सभी विरोधी दलों को आमंत्रण मिला था किन्तु उन्होंने कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। नरेन्द्र मोदी का विरोध करते करते ये भारत की जन भावनाओं का भी विरोध करने लगे हैं। विपक्ष स्वीकार करे या न करे वर्तमान समय में प्रधानमंत्री नरेंद मोदी देश के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं और उनका अकारण विरोध जन सामान्य को भी अच्छा नहीं लगता । जब भी मोदी जी देशवासियों से कोई अपील करते हैं देशवासी उनकी अपील को मानकर, उनकी अपेक्षा से चार गुना काम कर जाते हैं। जब कोविड काल में लाकउाउन लगा और मोदी जी ने लोगों से घरों की छतों पर आकर तालियां बजाने की बात कही या एक दीप जलाने की बात कही तो लोगों ने ताली-थाली से लेकर घंटा, घड़ियाल तक बजवा दिये और एक दीप की जगह सैकड़ों दीप जला दिए। तब भी इन दलों को कुछ समझ में नहीं आया था और अब तो प्राण प्रतिष्ठा के अवसर पर प्रभु श्री रामलला का स्वागत करना था तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक राम ज्योति की अपील पर जनता ने अद्भुत दीपोत्सव मना दिया। घर -घर,मंदिर -मंदिर में सुंदरकांड, रामचरित मानस व हनुमान चालीसा सहित विभिन्न प्रकार के आयोजन हो गए। पूरा वातावरण राममय हो गया।
गुलामी की मानसिकता वाली विचारधारा की बीमारी से त्रस्त आई.एन.डी.आई.ए. के लोगों को यह अविस्मरणीय क्षण या घटना भले ही मोदी का चुनावी प्रोपेगंडा लग रही हो किंतु प्रत्येक रामभक्त हिंदू को जो 500 साल के लंबे समय से प्रतीक्षारत था, जिस रामजन्मभूमि के लिए उसके पुरखों ने असंख्य बलिदान दिए फिर भी जो धैर्य से अपनी लड़ाई लड़ता रहा उसके लिए यह दिन न भूतो न भविष्यति वाला है। हर रामभक्त जानता है उसके पूर्वज अपने परम धाम से उसे आशीष दे रहे हैं और वह ये दिन देख सका तो नरेंद्र मोदी जी की प्रबल इच्छाशक्ति, पराक्रम और तप के कारण तो उसका नरेंद्र मोदी से आत्मिक रूप से जुड़ना स्वाभाविक है।
यह नरेंद्र मोदी और भारत की जन आकांक्षाओं का आत्मिक जुड़ाव है जो राजनीति से परे है।
— मृत्युंजय दीक्षित