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स्वाध्याय: तनाव प्रबंधन का एक माध्यम

अच्छी पुस्तके जीवंत देव प्रतिमाएँ हैं जिनके अध्ययन से जीवन तुरंत प्रकाशित होता है| — पं0 श्रीराम शर्मा आचार्य

स्वाध्याय, जिसे ‘स्व-अध्ययन’ भी कहा जाता है, विचारशीलता और आत्मज्ञान की एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो हमारे जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में मानी जाती है। स्वाध्याय का अर्थ होता है ‘अपने आप की पढ़ाई करना’ या ‘खुद से पढ़ाई करना’। यह आत्मा के अनन्त ज्ञान की खोज में एक माध्यम के रूप में कार्य करता है और हमें अपने आप को और जगत को बेहतर समझने की दिशा में मदद करता है।

जिस प्रकार से बर्तनों को रोज मजना पड़ता है, दांत रोज साफ़ करने पड़ते है, शरीर की सफाई के लिए स्नान रोज करना पड़ता हैं , कमरे में झाड़ू रोज लगाना पड़ता है ,इसी प्रकार मन पर वातावरण से निरंतर पड़ने वाले बुरे प्रभाव एवं मलिनता का निराकरण करने के लिए हमें नित्य स्वाध्याय करना चाहिए| 

स्वाध्याय की आवश्यकता

वर्तमान समय में तनाव एक ऐसी समस्या है जो युवा पीढ़ी के लिए आज एक गंभीर चुनौती बन चुकी है।और उससे बड़ी समस्या है उन्हें अपने तनाव को मैनेज करने का कोई तकनीक मालूम नही हैं जिसके कारण उनकी समस्या दिन-प्रतिदिन और बढती जाती हैं और जब उनका तनाव चरम पर पहुँचता हैं तब वो इससे बचने के लिए गलत दिशा में अग्रसर होते या फिर अपने जीवन को ही समाप्त करने की बात सोचते और करते हैं|  इस आलेख के माध्यम युवाओं के जीवन में तनाव आने के कारण और उसका सामाधान के बारे में बताया गया हैं|

तनाव के कारण

अव्यवस्थित जीवनशैली: आज के समय में युवा पीढ़ी के अन्दर बढ़ता हुआ तनाव का एक सबसे बड़ा कारण अव्यवस्थित जीवनशैली हैं| वें अपने दिनचर्या के प्रति इतने लापरवाह हैं की न तो उनके पास कोई सोने का समय है और न ही सुबह उठने का कोई समय और जिसके कारण उनका समय प्रबंधन नही हो पता हैं,जिसके कारण वें अपने कार्यों को ससमय पूरा नही पाते हैं और मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं |

ये बात सत्य है की युवा वर्ग अपने जीवन में परिवर्तन के दौर से गुजर रहा है, और इस दौर में अव्यवस्थित जीवनशैली और दिनचर्या का सिर पर होना आम बात है। परन्तु स्वामी विवेकानंद कहते है की “अगर अपने भाग्य का उदय चाहते है तो सूर्योदय से पहले जागना सीखो ” तो हमें इस  बात पर भी थोड़ी ध्यान आकर्षित करना चाहिए और बदलते समय में अगर में हमारे  पास कोई ऐसी तकनीक हो जिससे परिवर्तन के इस क्षण में  अपने आप को संतुलित रख सकते हैं| 

शिक्षा दबाव: युवा विद्यार्थियों के लिए अध्ययन और परीक्षाएँ एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं, और इसके साथ ही आगामी करियर भी एक बहुत बड़ा चुनौती होता हैं और वें इसके लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं पर वे प्रतिस्पर्धा दुसरे करने की और अग्रसर हो जाते हैं, जिसके कारण शिक्षा से संबंधित तनाव उनके अन्दर बढ़ जाता है।

सोशल मीडिया: सोशल मीडिया प्लेटफार्म  पर युवाओं के बीच में एक नई प्रकार की सामाजिक तनाव उत्पन्न करता है, क्योंकि यह आपसी प्रतिस्पर्धा और आत्म-मूल्य के सवाल को उत्तेजित करता है।

इसके साथ आज युवा पीढ़ी अपने दिन का ज्यादातर समय सोशल मीडिया पर रील लाइफ देखने में बर्बाद  देते है पर उसके बाद रियल लाइफ में तनाव में चले जाते हैं|

भावनात्मक कमी : वर्तमानसमय में युवाओं के अन्दर इमोशनल क्वालिटी में भी भारी कमी आई है और जिसके कारण उनका खुद के प्रति भी कोई इमोशन नही हैं और अपने माता-पिता के प्रति भी उनकी इमोशन कम हो रहा है और वें अपने माता-पिता के इमोशन नही समझ पाते है और उनके द्वारा कठिन परिश्रम से दिया हुआ साधन का सदुपयोग के बजाय  दुरूपयोग करते हैं|

समय का दुरूपयोग: “छात्रों एवं युवा पीढ़ी के बीच में समय का अपव्यय बढ़ रहा है, जो उनके शिक्षा और विकास को प्रभावित कर रहा है। अधिकतर समय तकनीकी उपकरणों पर खर्च हो रहा है और सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रहा है, जिससे उनकी पढ़ाई और विशेषज्ञता में कमी हो रही है। और समय के साथ जब वें बेरोजगार रह जाते और फिर बेरोजगारी के तनाव का शिकार होते हैं|  यह जरूरी है कि छात्र समय का सही तरीके से प्रबंधन करें ताकि वे अध्ययन में सफल हो सकें।” हमे समय की सम्पदा को नष्ट नही करना चाहिए| हमें हमेशा याद रखे समय ही जीवन हैं |

तनाव से बचने और मैनेज करने का तकनीक:

तनाव से बचने के कई सारे तकनीक हो सकते है और युवा पीढ़ी इससे बचने और इसको मैनेज करने के लिए अपनाते भी है पर उनको उसका लाभ नही मिलता हैं| जब हम कठिन परिश्रम करने के लिए संकल्पित होते हैं तब हमें मानसिक रूप से मजबूत होना पड़ता हैं| इस बात से बिल्कुल बच नही सकते हैं की मानसिक रूप से कमजोर होने के कारण खुद का लिया हुआ संकल्प पूरा नही हो पता हैं|

मानसिक रूप से मजबूत होने के तकनीक निम्नाकित है:-

ध्यान और साधना : ध्यान और साधना, हमारे जीवन के महत्वपूर्ण हिस्सा  हैं, जो हमें शांति, स्वास्थ्य, और सफलता की दिशा में मदद करता  हैं। ये आत्मा के साथ जुड़ने और आध्यात्मिक विकास एक माध्यम हैं|

जब आज के छात्रों और युवा पीढ़ी को ध्यान- साधना के विषय में बताया जाता  है तो उन्हें लगता है उन्हें पूजा-पाठ में फंसाया जा रहा हैं| यें ध्यान और साधना कोई पूजा- पाठ का विषय और पद्धति नही हैं| ध्यान मनुष्य को अन्दर से इतना मजबूत बनाता है की वें अपने जीवन में आने वाले सभी समस्याओं का धैर्य-पूर्वक सामना करते हैं| जो व्यक्ति नियमित रूप से ध्यान और साधना करते है उनकी बुद्धि इतनी सूक्ष्म हो जाती की वे बड़े ही सरलता के साथ सही और गलत का निर्णय ले सकते हैं|

ध्यान करने से हमारी एकाग्रता बढती हैं और हमारे मन पर हमारा नियंत्रण होता, हम मन के भटकावे से नही भटकते हैं|हम छोटी-छोटी समस्या से विचलित और उत्तेजित नही होते, हमारे अन्दर सोचने और समझने की क्षमता बढ़ जाती है|

यें ध्यान हमें जीवन में सभी आयाम को संतुलित करके जीना सिखाता हैं, चाहे वो छात्र जीवन हो, व्यावहारिक जीवन हो, गृहस्थ जीवन हो, या पेशेवर जीवन हो|  इसलिए प्रत्येक मनुष्य को नियमित ध्यान करना चाहिए|

स्वाध्याय: हम सभी जीवन में सफल होना चाहते हैं और हर कोई सफलता चाहता है और इसके लिए हम अनेकानेक प्रयास और प्रयत्न करते हैं| इसमें कई बार लोग सफल होते हैं और कई बार असफल होते है|

सफल होना और असफल होना दोनों के बिच के अंतर हमारा विचार और हमारे सोचने का तरीका का होता हैं| हम जैसा सोचते है वैसा ही विचार हमारे अन्दर उत्पन होते है और हम उसी के अनुरूप क्रिया करते हैं| इसके परिणामस्वरुप होता यह है की अगर हमारा चिंतन सकारात्मक होते तो विचार भी सकारात्मक आते और परिणाम भी सकारात्मक होते है| जब हमारा चिंतन ही नकारात्मक होते है तो परिमाण भी इसी के अनुरूप होते हैं|

अगर आज युवा पीढ़ी अगर अपने अन्दर की सोचने का तरीका बदल ले, अगर उसका चिन्तन सकारात्मक हो, मन के अन्दर उठने वाले विचार पॉजिटिव हो तो वह युवा कभी भी टेंशन, डिप्रेशन , स्ट्रेस आदि का शिकार नही होगा|

मनुष्य के अन्दर आने वाले नकारात्मक विचार और चिंतन को सकारात्मकता की और प्ररित करने का माध्यम ही स्वाध्याय है| जब हम स्वाध्याय के माध्यम से सतत अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करते है तब हमारे अन्दर स्वतः की अच्छी विचारो का वेग उठाना शुरू हो जाता हैं| हमें उन पुस्तकों में अपना जीवन दर्शन होता है और हमारे जीवन में आने वाली सभी समस्याओं का समाधान उस पुस्तक में मिलता चला जाता हैं|

किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान उसके चिंतन,चरित्र और व्यवहार से होता हैं और यही हमारी कुशलता की परिचायक होती है| जब हम नियमित स्वाध्याय करते हैं तब यह हमारे चिंतन,चरित्र और व्यवहार को कुशल बनाता हैं|

इसी सन्दर्भ में स्वामी विवेकानंद कहते है की “मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं हो जो जैसा सोचता है, करता है ,वैसा ही बन जाता है”|

इसीलिए हमें अपने चिंतन और विचार को खुबसूरत बनाने के लिए नियमित स्वाध्याय करना चाहिए| स्वाध्याय  के माध्यम  से किसी भी महापुरुष की जीवनी और उनकी आत्मकथा नियमित पढना चाहिए| इससे हमारे विचार सकारात्मक होते और सकारात्मक विचार मनुष्य को तनावमुक्त रखते है|

— विशाल सोनी 

विशाल सोनी

शिक्षा-MCA पेशा- शिक्षक वैशाली (बिहार) 8051126749