गीत/नवगीत

चकल्लस

चलो एक बार फिर, पलटी मारें
अपनी बिगड़ी, किस्मत संवारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें।।

सब पर, चुनाव का, नशा चढ़ा है
कौन किधर जाएगा, किसे पता है
खुद को सब,तीस मारखां समझते
लेकिन अंदर तो,सब खोखला है

जब सब केवल,निज स्वार्थ में डूबे
तो जनता के भले की,कौन विचारे
चलो एक बार फिर, पलटी मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें।।

कहां मेरा लाभ, कहां नुकसान है
गहन अध्ययन, चल रहा है
जनता में मेरी, क्या, छवि बनेगी
सब कुछ इसी पर , लटका हुआ है

मेरा काम बने, या न बने

दूसरे का बनता , काम बिगाड़ें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें।।

इनको बहुत अच्छे, से मालूम है
समय के साथ, सब भूल जाएंगे
पहले भी पाला, वे बदल चुके हैं
एक बार फिर, नया गुल खिलाएंगे

चाहे अपनी सीट भी, न जीत पाएं
फिर भी सदा अपनी , शेखी बघारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें।।

नैतिकता, ईमानदारी, पुरानी बातें
अब तो निज हित, ही भला लागे
स्वार्थ, लोलुपता में,सब डूबे हुए हैं
जिसको देखो , उल्टा ज्ञान बांटे

नेक राह अब,न, किसी को सुहाए
हम भी फालतू में , क्यों झक मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें।।

फिर कोई, बहाना, यह गढ़ लेंगे
जनता के हितों, का हवाला देंगे
आपके लिए ही,किया है सब कुछ
सबके अंदर यह, विश्वास भर देंगे

चिकनी चुपड़ी, बातों के दम पर
मन फिर से, नयी नयी,कुलांचे मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें।।

‌जो थे प्रधानमंत्री, पद के दावेदार
विपक्षी एकता के,थे मुख्य सूत्रधार
वही जब अपनी, निष्ठा बदलकर
करेंगे गठबंधन का , ऐसा बंटाधार

उनको भला कोई, कैसे बचाए
जो अपने पैर पर, कुल्हाड़ी मारे
चलो एक बार फिर, पलटी मारें
चलो एक बार फिर, पलटी मारें।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई