लघुकथा – प्रमुख सुर्खी
“नौ महीने तक जिसको धरती के समान धैर्य से गर्भ में धारण किए रखा और पांच साल जिस बेटे को सीने से लगाए रखा, उसे इतनी बेदर्दी से मारा कैसे?” व्यावसायिक पत्रकार ने हत्यारी मां से पूछा.
“क्या करती, मेरे पास कोई चारा नहीं था. उसको ब्लड कैंसर था, मेरे पास उसके इलाज के लिए पैसे नहीं थे.” महिला की बेचारगी नमूदार हो गई.
“इसका यह तो इलाज नहीं था!” बात की तह तक पहुंचे बिना पत्रकार भला कहां छोड़ने वाला था!
“सच तो यह भी है कि, मेरे परिजनों को उम्मीद थी कि गंगा में डुबकी लगाने से मेरा बच्चा ठीक हो जाएगा. इसलिए मैंने लगातार बच्चे को डुबकियां लगवाई और परिजन हर की पौड़ी पर मंत्रों का जाप करते रहे, और मेरे बच्चे की मौत हो गई…” दुखियारी मां की रुलाई फूट पड़ी.
“अंधविश्वास की ग्रंथियां आस्था को लील गई थीं.” पत्रकार ने समाचार पत्र के प्रथम पृष्ठ के लिए प्रमुख सुर्खी बनाई.
— लीला तिवानी