लघुकथा : हथकंडे
कंधे पर बैग लटकाए एक युवक बस पर चढ़ा। सामने एक भी सीट खाली नहीं थी। पीछे की ओर नजरें दौड़ाई। एक सीट दिखी उसे, जिस पर एक युवती पहले से बैठी हुई थी। जाकर बैठ गया उसी सीट पर। युवती को अन्कम्फर्टेबल लगा। बोली तो कुछ नहीं, पर वह चाहती थी कि युवक उस सीट पर न बैठे।
बस चल पड़ी। युवक बिल्कुल शांत बैठा हुआ था। अब बस जितनी तेज गति से चलने लगी , उतनी ही तेजी से युवती का दिमाग चलने लगा। आखिर उसने मन बना ही लिया कि युवक को अपनी सीट से जैसे भी हो भगाया जाय। फिर उसने अपना तमतमाया-सा चेहरा बनाया। झिड़की निकली- ” ऐ मिस्टर ! ठीक से बैठिए। ये क्या है ? आप जैसे लड़कों को मैं अच्छी तरह समझती हूँ। शरीफ लड़कियों को देखते ही बस…।”
युवती की कैं… कैं… आवाज सुन बस के सभी यात्री युवक पर चिल्लाने लगे। युवक कुछ कह ही रहा था कि सबने उसे चुप करा दिया। युवक को सीट से उठना ही पड़ा। युवती मुस्कुरा रही थी।
— टीकेश्वर सिन्हा ‘गब्दीवाला’