लघुकथा

लघुकथा – मौसम के रंग

      तीन दिन से घनघोर बारिश जारी थी । नदी , तालाब , नाले तो ठीक सडक के गड्डे पोखर आदि भी लबालब हो रहे थे | और तो और शहर से कुछ दूर स्थित डेम भी उफन रहा था । सारे सायफन खोल दिये जाने से बडा विहँगम दृश्य बना हुआ था ।

        गुप्ता परिवार के सभी सदस्य भी पिछले तीन दिनों से घर पर ही बारिश के मजे ले रहे थे । परिवार के दोनोँ व्यवसायी बडे भाई और अन्य दोनोँ नौकरीपेशा भाई सभी मस्ती में डूबे इस अनापेक्षित अवकाश का लाभ ले रहे थे  । कभी पकोडे बनाये जा रहे थे तो कभी कुछ और  । छतों पर , गैलरी में पानी में भींगते बच्चों और पत्नियों के साथ दिन में होली का मजा लेते और शाम भी ड्रिंक्स के शौकिनों के लिये ज्यादा रंगीन हो रही थी । फिर भी तीसरा दिन होते होते तो सभी उकताने लगे थे तब यह तय किया गया कि आज डेम साइट जाकर पिकनिक मनाया जाय ।

        देखते ही देखते सारी तैयारियाँ हो गई और दो  गाडियों मेँ गुप्ता परिवार का यह काफिला खाने पीने और मनोरंजन के सारे साधनों के साथ डेम साइट की ओर चल पडा । अपनी पाशॅ कालोनी से बाहर निकलते ही मुख्य बाजार की अधिकाँश दुकानेँ इस तेज बारिश में कहीं खुली कहीं बन्द नजर आ रही थी ।

       कुछ ऐसे लोग जिनका जीवन रोज की आय पर ही निर्भर था वे परेशान तो हो रहे थे लेकिन बारिश की चिन्ता किये बगैर काम मेँ लगे थे जैसे कुछ रिक्शे वाले भींगते हुए भी रिक्शा चला रहे थे चाय के ठेले वाले और कुछ सब्जी वाले गीले होते हुए भी अपना सामान बेच रहे थे । गुप्ता परिवार की दोनो गाडियाँ इन सब के मजे लेते शहर के बाहरी ओर गुजर रही थी जहाँ की झुग्गी झोपडियाँ और कच्चे पक्के मकान  जलाजल हो रहे थे । यानी हर घर के हर कोने में पानी टपक रहा था जिससे बचने का कोइ उपाय नहीं था ।

         शहर से बाहर आते ही परिवार के युवा सदस्य इस रुमानी मौसम मेँ खुद को रोक नहीं पाये । सडक किनारे गाडी  कर वहीं भींगते हुए नाचने लगे । बडी विचित्र स्थिति दिख रही थी । एक तरफ बडे बडे आलीशान मकानोँ मे रहने वाले मजे के लिये जानबूझ कर भींग रहे थे तो दूसरी ओर झुग्गी झोपडी वाले अपने जीवनयापन का बेशकीमति सामान जैसे कुछ फटेपुराने बिस्तर कुछ पुराने हो चले कपडे और कुछ खाने का अनाज भींगने से बचाने के लिये जी तोड कोशिश कर रहे थे । तीन दीनोँ से आधा अधूरा खाना खाये ये फटेहाल लोग मजबूरी में पूरे भींगते हुए मौसम को गालियाँ देते जा रहे थे और अपने टूटे फूटे टपरों को बरसातियों से ढकने की असफल कोशिशें कर रहे थे ।

       सडक किनारे नाचता कूदता गुप्ता परिवार बारिश का मजा लेता हुआ डेम साइट की ओर रवाना हो चुका था मौसम का पुरा मजा लेने के लिये ।

   कितना आश्चर्य था बारिश का मौसम वही था पर उसके रंग अलग अलग थे ।

— महेश शर्मा, धार   

महेश शर्मा

जन्म -----१ दिसम्बर १९५४ शिक्षा -----विज्ञान स्नातक एवं प्राकृतिक चिकित्सक रूचि ----लेखन पठान पाठन गायन पर्यटन कार्य परिमाण ---- लभग ४५ लघुकथाएं ६५ कहानियां २०० से अधिक गीत२०० के लगभग गज़लें कवितायेँ लगभग ५० एवं एनी विधाओं में भी प्रकाशन --- दो कहानी संग्रह १- हरिद्वार के हरी -२ – आखिर कब तक एक गीत संग्रह ,, मैं गीत किसी बंजारे का ,, दो उपन्यास १- एक सफ़र घर आँगन से कोठे तक २—अँधेरे से उजाले की और इनके अलावा विभिन्न पत्रिकाओं जैसे हंस , साहित्य अमृत , नया ज्ञानोदय , परिकथा , परिंदे वीणा , ककसाड , कथाबिम्ब , सोच विचार , मुक्तांचल , मधुरांचल , नूतन कहानियां , इन्द्रप्रस्थ भारती और एनी कई पत्रिकाओं में एक सौ पचास से अधिक रचनाएं प्रकाशित एक कहानी ,, गरम रोटी का श्री राम सभागार दिल्ली में रूबरू नाट्य संस्था द्वारा मंचन मंचन सम्मान --- म प्र . संस्कृति विभाग से साहित्य पुरस्कार , बनारस से सोच्विछार पत्रिका द्वारा ग्राम्य कहानी पुरस्कार , लघुकथा के लिए शब्द निष्ठा पुरस्कार ,श्री गोविन्द हिन्दी सेवा समिती द्वाराहिंदी भाषा रत्न पुरस्कार एवं एनी कई पुरस्कार सम्प्रति – सेवा निवृत बेंक अधिकारी , रोटरी क्लब अध्यक्ष रहते हुए सामाजिक योगदान , मंचीय काव्य पाठ एनी सामाजिक संस्थाओं के माध्यम से सेवा कार्य संपर्क --- धार मध्यप्रदेश – मो न ९३४०१९८९७६ ऐ मेल –mahesh [email protected] वर्तमान निवास – अलीगंज बी सेक्टर बसंत पार्क लखनऊ पिन 226024