हंसना मुस्कुराना दोनों अपने हाथ
अच्छे का इंतजार करते करते
जो मिला था वह भी गंवा दिया
तृष्णा रही बहुत कुछ पाने की
जिसने दिया उसी को भुला दिया
जीवन निकल गया मिला कुछ नहीं
जो चल रहा है उसी में मज़ा लीजिए
हर वक्त क्यों रहते हो तनाव में
अपने आप को मत यूं सजा दीजिए
हंसना मुस्कुराना दोनों हैं अपने हाथ
यह आप पर निर्भर है आपको क्या चाहिए
अवसर मत ढूंढिए कोई हंसने का
बिना बात के भी कभी कभी मुस्कुराइए
मन में मत कुछ रखिये
जो मन को भाय वह पीजिए खाइए
घर में बैठ कर क्यों करते हो वक्त बर्बाद
कुछ समय निकाल कर बाहर घूम आइए
दीन दुखियों के साथ कुछ वक्त बिताइए
दोस्तों के साथ दूर तक टहलने निकल जाइए
बुजुर्गों के साथ बैठिए गप्पें मारिये
मुस्कुराने की बजह उनको दीजिए खुद भी मुस्कुराइए
सार्थक हो जाएगा आपका जीवन जो
आपके कारण दूसरों के होठों पर हंसी आएगी
ऊपर वाला भी देखकर खुश होगा आपका काम
जीवन की बगिया में खुशी हमेशा मुस्कुराएगी
— रवींद्र कुमार शर्मा