प्रेमपत्र
अलमारी में कपड़ो की तह के नीचे
झाँकते एक कागज के टुकड़े पर
जब नज़र पड़ी
वक़्त के साथ साथ
उसकी रंगत बदली सी थी
पर रखा हुआ था बड़ी संजीदगी से
निकाल कर देखा
तो वह एक पत्र था
होने वाली पत्नी को सम्बोधित था
क़सीदे कड़े थे तारीफ में
तू नूरे चिराग है
चौदवी का चाँद है
चाँद भी शरमा जाये तुझे देखकर
यह जुल्फें क्या हैं
घटा हैं सावन की
यह बात थी कोई आज से चालीस साल पहले की
पढ़ा खूब हँसा
क्योंकि जो चाँद था
वह आफ़ताब सा नज़र आता है अब