ये नोटों की मशीन है
ये तेरा दल ये मेरा दल
हो हाथ झाड़ू या कमल
जहाँ मिले मलाइयाँ
वहीं को चल वही को चल।
ये तेरा दल ये मेरा दल
ये नोटों की मशीन है,
विचारधारा होती क्या
ईमान भी क्या चीज है,
जहां पे फायदा बड़ा
वो दल हमें अज़ीज़ है,
के कुर्सियों का लोभ है
हाँ दबदबे की चाह है,
ये कुर्सी और दबदबा
मिले तो लूं मैं दलबदल।
ये तेरा दल ये मेरा दल
ये नोटों की मशीन है।
न हैं जवाबदेहियाँ
न कोई जिम्मेदारियां,
इधर भी अपनी यारियां
उधर भी अपनी यारियां,
हों यारियों से लाभ वो
कि सात पुश्तें खाए जो,
बन के फिर फ़क़ीर हॉं
उठा के झोला देंगे चल।
ये तेरा दल ये मेरा दल
ये नोटों की मशीन है
— मुकेश जोशी ‘भारद्वाज’