ग़ज़ल
अपने मुंह से अपना ही गुणगान,गलत है
अपने घर में खुद का ही सम्मान,गलत है
हम ही सही,गलत हैं सारे जीवन में
जो भी ऐसा सोचे,वह नादान गलत है
जिनके घर में प्रभु ने सब कुछ सौंपा है
ऐसे लोगों को भी देना दान,गलत है
क्या लेकर आया,क्या लेकर जाएगा
फिर भी करते हैं जो-जो अभिमान,गलत है
जिसने जन्म दिया,हमको पाला-पोसा
उनका किसी तरह का भी अपमान,गलत है
अपनी संस्कृति या परंपरा का बैरी
जो भी हो,जैसा भी हो, इंसान गलत है
“मां की दुआ पलट सकती पूरा जीवन”
ना माने तो फिर ऐसा विज्ञान,गलत है।
— सुरेश मिश्र