कविता

मेरा वेलेंटाइन

पल पल ज़िगर में मेरे

हसरतें जो बेहिसाब जगाता है

मैं तड़पती हूं जिसके लिए

वो मेरा वेलेंटाइन कहलाता है

ना छूकर कभी भी मुझे

दर्द जो मेरा समझ जाता है

मैं तरसती हूं जिसके लिए

वो मेरा वेलेंटाइन कहलाता है

मैं जैसी हूं वैसी मुझे

जो बेवजह चाहे जाता है

मैं आहें भरती हूं जिसके लिए

वो मेरा वेलेंटाइन कहलाता है

बिन बोले कुछ मुझको समझकर

जो हर तकलीफ़ हरे जाता है

मैं हंस के जीती हूं जिसके लिए

वो मेरा वेलेंटाइन कहलाता है

पाने सदा एक झलक को मेरी

जो हरपल बेताब रहे जाता है

मैं संवरती हूं जिसके लिए

वो मेरा वेलेंटाइन कहलाता है

छोड़ दुनिया के हुस्न औ  महक

जो बस मेरा बन जाता है

मैं समर्पित हूं जिसके लिए

वो मेरा वेलेंटाइन कहलाता है

— पिंकी सिंघल 

पिंकी सिंघल

अध्यापिका शालीमार बाग दिल्ली